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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सम्बन्धित श्लोक मैंने उस लेखमें ही दे दिये हैं। अब नीचे उन लोगोंके लाभके लिए, जो संस्कृत नहीं जानते, उन श्लोकोंका अंग्रेजी अनुवाद दे रहा हूँ । यह ‘भगवद्गीत’ के ‘साँग सेलेशियल’ नामसे एडविन आर्नाल्ड-कृत अनुवादसे लिया गया है।'

यहां कर्मसे तात्पर्य, निस्सन्देह, शारीरिक श्रमसे है, और यज्ञरूपमें किया गया कर्म वही है जो समान लाभके लिए सभी लोगों द्वारा किया जाये। ऐसा कर्म, ऐसा यज्ञ सिर्फ चरखा चलाना ही हो सकता है। मैं यह नहीं कहना चाहता कि ये श्लोक रचते समय ‘गीता ’कारके मनमें चरखा ही रहा होगा। उन्होंने तो सिर्फ आचरणका एक बुनियादी सिद्धान्त प्रस्तुत कर दिया। और भारतमें इन श्लोकोंका अध्ययन करते हुए तथा भारतपर उन्हें लागू करते हुए तो मैं यही सोच सकता हूँ कि कताईका काम ही वह शारीरिक श्रम है, जिसमें यज्ञकी गरिमा है। मैं तो इससे शुभतर या बढ़कर राष्ट्रीय कर्मकी कोई कल्पना ही नहीं कर सकता कि जो काम करना हमारे सभी गरीब भाइयोंके लिए अनिवार्य है, उस कामको सभी लोग प्रतिदिन ज्यादा नहीं तो एक घंटा ही करें, और इस तरह उनके साथ और फलस्वरूप समस्त मानव- जातिके साथ तादात्म्य स्थापित करें। मैं ईश्वरकी इससे बड़ी आराधनाकी कल्पना नहीं कर सकता कि मैं गरीबोंके लिए उसी तरह काम करूँ जिस तरह वे स्वयं करते हैं। चरखेका मतलब है दुनियाकी दौलतका अधिक न्यायोचित और समान बँटवारा।

बंगालका उत्साह

जिन लोगोंने कविवरका वह लेख नहीं पढ़ा है, उन्हें यह जानकर सन्तोषका अनभव होगा कि वे चरखेके बिलकुल विरुद्ध हैं, ऐसी बात नहीं है। उन्हें इस बातकी जरूरत नहीं दिखाई देती कि सभी लोग चरखा चलायें। लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि जैसे-जैसे हम इस क्षेत्रमें आगे बढ़ते जायेंगे, भारतसे उसकी कष्टकर और बढ़ती हुई गरीबीको दूर करनेके साधनके रूपमें चरखेकी कार्य-साधकता और महत्वमें लोगोंका सन्देह समाप्त हो जायेगा । डा० प्रफुल्लचन्द्र रायने चरखेके महत्वको खुले दिलसे स्वीकार किया है। यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। और इससे भी बड़ी बात चिट्ठियोंसे प्राप्त यह समाचार है कि देशबन्धु दास तथा उनकी पति-परायण पत्नी जहाँ कहीं जाती हैं, लोग सामूहिक रूपसे विदेशी वस्त्रोंका त्याग करके चरखेको अपना लेते हैं। यहाँ एक पत्रके अंशका अनुवाद दिया जा रहा है। यह पत्र एक बंगाली भाईको उनके पिताने लिखा है, जो चाँदपुरके पास रहते हैं, जिसे गोरखोंके कारनामेने भारत-भरमें प्रसिद्ध कर दिया है। चांदपुरके ही स्टेशनपर गोरखोंने उस भयंकर रात्रिमें धावा किया था और असहाय कुलियोंको स्टेशनके अहातेसे निकाल बाहर किया था । उक्त पत्रका अंश इस प्रकार है :

कल समूह-गायन करता हुआ एक जुलूस निकला, हाथ-कते सूतकी प्रदर्शनी हुई और नीरद पार्कमें एक भारी सार्वजनिक सभा हुई। . . . एक बहुत

१. अंग्रेजी अनुवादका हिन्दी रूपान्तर यहाँ नहीं दिया जा रहा है। भगवद्गीताके मूल श्लोकोंके लिए देखिए “ महान् प्रहरी ”, १३-१०-१९२१ ।

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