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५. वक्तव्य : रियासतोंमें दमनके सम्बन्ध में

[ २५ अगस्त, १९२१ के पूर्व ]

अपनी यात्रामें जब मैं ग्वालियर जा रहा था तो मुझे यह देखकर अत्यन्त आश्चर्य हुआ कि लोग स्टेशनपर हमारी गाड़ीके पास आने में भी डरते थे। प्लेटफार्मपर स्वदेशी वस्त्र नामको भी दिखलाई नहीं पड़े। इसका कारण मुझे शीघ्र ही मालूम हो गया। इस रियासत में असहयोग आन्दोलन एकदम बन्द कर दिया गया है। खादीकी टोपी पहनना तथा अपने पास चरखा रखना रियासत पसन्द नहीं करती, बल्कि ऐसा करना जुर्म समझा जाता है। मेरा विश्वास है कि महाराजा साहबके विचार इतने गिरे हुए नहीं हैं। मेरी पूर्ण सहानुभूति महाराजा साहबके साथ है। गवर्नमेंटका विषैला प्रभाव जितना हिन्दुस्तानी रियासतोंमें देख पड़ता है उतना और कहीं नहीं। इसका कारण यह है कि हिन्दुस्तानी रियासतें किसी प्रकारका सुधार तो कर ही नहीं सकतीं, बल्कि बहुधा उनसे जबर्दस्ती अपनी प्रजाकी स्वतन्त्रतापर आक्षेप कराया जाता है। इसके अतिरिक्त गवर्नमेंटकी छत्रछायामें समस्त भारतकी तरह वे भी कमजोर तथा गैरजिम्मेदार हो गई हैं। इस कारण यदि कोई राजा जिद्दी हो और जुल्म करना चाहे तो वह अपनी रियासत में वाइसरायसे भी अधिक उपद्रव कर सकता है। वर्तमान शासन-प्रणालीका सबसे बड़ा दोष यही है। मैं आशा करता हूँ कि ग्वालियर स्टेशनपर जो बातें मुझे बताई गई हैं, बहुत बढ़ाकर कही गई थीं और उस रियासत में इतना घोर दमन नहीं हो रहा है जितना कि कहा जाता है ।

आज, २५-८-१९२१

६. टिप्पणियाँ

आन्ध्रमें असहयोग

ये टिप्पणियाँ मैं पटनामें गंगा तटपर स्थित श्री मजहरुल हकके[१] सदाकत आश्रमसे लिख रहा हूँ। मैंने हमेशा असहयोगमें बिहारका स्थान सर्वोत्तम माना है। और उसके बाद आन्ध्रका। लेकिन अब कहना कठिन है कि कौन-सा प्रान्त बाजी मार ले जायेगा। लेकिन जो भी हो स्थानीय सरकार लोगोंको अनुशासन सीखनेमें अवश्य योग दे रही है। अपने पिछले पत्र में श्री कोण्डा वेंकटप्पैया लिखते हैं :

मैंने अपने पिछले पत्रमें आपको सूचना दी थी कि मेरी और मेरे तीन व्यापारी मित्रोंकी गिरफ्तारीके बाद इस नगरके वकीलोंने ३१ दिसम्बर तक अदालतोंका बहिष्कार करनेका निश्चय किया है। हमारी रिहाईके बाद बाप-

  1. बिहारके नेता; मुस्लिम लीगके संस्थापकों में से एक और बाद में उसके अध्यक्ष; चम्पारन सत्याग्रह के दिनोंमें उन्होंने गांधीजीकी सक्रिय सहायता की थी।