पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 21.pdf/४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१३
टिप्पणियाँ

आचरण न किया तो जब हम स्वराज्य प्राप्त कर लेंगे तब भी हमारी यही वृत्ति रहेगी। कार्य समितिकी पिछली बैठक में कोषाध्यक्षने इस बातकी बड़ी शिकायत की थी कि कितनी ही प्रान्तीय कमेटियोंने अभीतक उनके पास अपने द्वारा इकट्ठे किये गये चन्देकी चौथाई रकम नहीं भेजी। कहा गया है कि कुछ प्रान्तोंने तो अपनी रकम इसलिए रोक रखी है कि दूसरे प्रान्तोंने अभीतक अपनी रकम नहीं भेजी। मैं तो इसके विपरीत यह कहूँगा कि कांग्रेसके प्रति अपने कर्त्तव्योंका पालन ठीक-ठीक करनेमें प्रत्येक प्रान्तको एक-दूसरेसे होड़ करनी चाहिए। बस, केवल इसी रीतिसे हम स्वराज्यके योग्य होनेकी आशा रख सकते हैं और तभी हमारी माँगें आदरके साथ सुनी जायेंगी। यदि कांग्रेस संस्थाओंका काम अच्छी तरह चलाना है तो कार्यसमितिकी तमाम सूचनाओं और आदेशोंका पालन सचाई और तत्परताके साथ होना चाहिए। कार्यसमितिने यह निश्चय किया है कि हर प्रान्तके कुल चन्देका कमसे कम चौथाई हिस्सा स्वदेशी--अर्थात् हाथ-कताई और हाथ-बुनाईके काममें लगाना चाहिए। यदि हमें खादीकी माँग पूरी करनी है तो २५ लाख रुपये सारे भारतके लिए कोई बड़ी रकम नहीं है। सच तो यह है कि जो प्रान्त इस मदपर जितना ज्यादा खर्च करेगा, उसका काम उतना ही ज्यादा अच्छा होगा।

ईसाई और असहयोग

उत्तरी बसरासे एक हिन्दुस्तानी ईसाईने लिखा है:

"मुझे यह कहते हुए दुःख होता है कि आप हिन्दुस्तानी ईसाइयोंको हिन्दुस्तानकी प्रजा नहीं समझते। मैंने कई बार आपके 'यंग इंडिया' में देखा है। कि आप मुसलमान, हिन्दू, सिख आदिका नाम तो लेते हैं, पर ईसाइयोंका उल्लेख नहीं करते ।

आप विश्वास कीजिए कि हम हिन्दुस्तानी ईसाई भी हिन्दुस्तानकी प्रजा हैं और हिन्दुस्तान के हितके कामोंमें बहुत रस लेते हैं।

मैं पूरे विश्वाससे कहता हूँ कि असहयोगको प्रगतिमें हिन्दुस्तानी ईसाइयोंने जितनी दिलचस्पी ली है उतनी और किसीने नहीं। अपनी मातृभूमिके कल्याणके कामोंके साथ मेरी बड़ी हमदर्दी है। में खुद भी एक असहयोगी हूँ।

मैं वादा करता हूँ कि मैं आपको कभी-कभी मेसोपोटेमियामें रहनेवाले हिन्दुस्तानियोंकी हालतके बारेमें कुछ लिखता रहूँगा।"

मैं इन पत्र भेजनेवाले महाशय तथा अन्य हिन्दुस्तानी ईसाइयोंको विश्वास दिलाता हूँ कि असहयोग में जातियों और पन्थोंके लिहाजकी गुंजाइश नहीं है। वह तो अपने दायरेमें सबको निमन्त्रित करता है और प्रवेश देता है। कितने ही हिन्दुस्तानी ईसाइयोंने तिलक स्वराज्य कोषमें चन्दा दिया है। कुछ प्रसिद्ध हिन्दुस्तानी ईसाई तो असहयोगकी सबके आगेकी कतार में हैं। हिन्दुओं और मुसलमानोंका जिक्र तो बार-बार इसलिए आता है कि आजतक वे लोग एक दूसरेको अपना दुश्मन समझते रहे हैं। इसी प्रकार जब जब किसी जातिका उल्लेख खास तौरपर 'यंग इंडिया' में हुआ है तब-तब उसके लिए वैसा कोई सबब रहा है।