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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं छोड़ पाते। मैं कहूँगा कि कारण रोटीकी समस्या उतना नहीं है जितना कि रोटी कमानेके लिए शरीर श्रम करनेकी अरुचिकी समस्या। हम शिक्षित भारतीयोंने रोटीके लिए शरीर श्रम करनेकी कला खो दी है। बुनने, धुनने और कातनेवालोंकी मजदूरी रोज-ब-रोज बढ़ती जा रही है -- ऐसी हालत में हम यह नहीं कह सकते कि रोटी कमाना कोई बड़ी समस्या है। प्रतिदिन आठ घंटे बुनाईका काम करनेवाला शुरूमें ही कम-से-कम एक रुपया रोज कमा सकता है। सिद्धहस्त बुनकर आज दो रुपया रोज तक कमा लेते हैं। हमें अपनी जीविकाके लिए केवल टेबल कुर्सीका ही काम चुननेकी बात नहीं सोचनी चाहिए।

नीतिके तौरपर अहिंसा

इस विद्यार्थीका अन्तिम प्रश्न सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है।

"क्या आप यह आशा करते हैं कि यह शान्तिमय संग्राम जिसका आधार प्रेम और आत्मिक बल है, उन लोगोंके शामिल होनेसे जो कि अहिंसा या शान्तिको एक नीति मात्र समझते हैं, सफल हो सकता है ? शुद्ध अहिंसा के लिए अधिक साहस और देशप्रेमकी आवश्यकता है। परन्तु अगर यह "कमजोरोंका हथियार" हो तो भावी दमनके मुकाबले में इससे लोगों में भयका संचार होगा।

प्रश्नकर्त्ताने सवालका कुछ जवाब तो खुद ही दे दिया है। अहिंसा धार्मिक विश्वासके रूपमें न सही, नीतिके ही रूपमें स्वीकार की जाये तो भी उसमें सफलता मिल सकती है। पर कब ? जब उसके साथ साहस और देशका अथवा स्वीकृत कार्यका सच्चा प्रेम मिला हुआ हो। अन्याय करनेवालोंके प्रति द्वेष रखनेका अर्थ देश-प्रेम हो, सो बात नहीं। हमारे रास्तेमें तो कठिनाई इस बातसे पैदा होती है कि बहुत से लोग दरअसल तो नीतिके तौरपर भी अहिंसाके कायल नहीं होते पर ऐसा बताते जरूर हैं। अलीबन्धु[१] अहिंसाको बिलकुल नीतिके तौरपर ही मानते हैं; परन्तु मेरे खयालमें अहिंसा में नीतिके तौरपर सच्चा विश्वास करनेवाला उन दो भाइयोंसे बढ़कर आज कोई नहीं है। वे मानते हैं कि शान्तिभंग होनेसे हमारे कामको धक्का पहुँचनेके सिवा और कुछ नहीं हो सकता और यदि व्यापक पैमानेपर अहिंसा या शान्तिका व्यवहार किया गया तो पूरी तरह सफलता मिल सकती है। जो मनुष्य एक नीतिके तौरपर ही सत्यका अवलम्बन करता है वह उसके भौतिक फलोंको अवश्य पाता है। परन्तु जो केवल सत्यका ढोंग रचता है वह हरगिज नहीं पा सकता।

कार्यसमितिकी आज्ञाओंका पालन

यदि हम इसी वर्ष स्वराज्य प्राप्त कर लेना चाहते हैं तो हमें अपने जीवनके प्रत्येक अंगमें और, सबसे अधिक, कांग्रेसी संस्थाओंके काममें उसके आनेके लक्षण दिखाने होंगे। जो कानून और नियम हमने आज स्वयं बनाये हैं उनके अनुसार यदि हमने

  1. मौलाना मुहम्मद अली (१८७८-१९३१) और शौकत अली (१८७३-१९३७); खिलाफत आन्दोलनके प्रमुख नेता।