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अफगानिस्तान में हिन्दू

 

ओर कुछ भी ध्यान दिया जाये तो क्या मैं आपसे नीचे लिखी बातें पूछ सकता हूँ?
मैंने बेलो-लिखित ‘जर्नल ऑफ ए पोलिटिकल मिशन टु अफगानिस्तान’ में पढ़ा है कि हिन्दकीयों, अर्थात् अफगानिस्तानके हिन्दुओंको अनेक अपमानजनक और अन्यायपूर्ण निर्योग्यताओंके अधीन रहना पड़ता है। उदाहरणके लिए उन्हें “जजिया” देना पड़ता है, अलग तरहकी पोशाक पहननी पड़ती है, वे जीन कसे घोड़ेपर सवारी नहीं कर सकते, आदि। उस समय इन बातोंको अवश्य ही अफगानिस्तानकी मुस्लिम सरकारकी स्वीकृति प्राप्त थी। तबसे यदि स्थितिम कुछ सुधार हो गया हो तो मुझे उसकी कोई जानकारी नहीं है। आपके अनेक ‘खिलाफती’ मित्र ऐसे हैं जो खुले आम हिन्दुस्तानपर अफगानिस्तानके आक्रमणके पक्षमें होनेका ऐलान कर चुके हैं। क्या आप हिन्दुओंको यह बतायेंगे कि अफगानिस्तान के हिन्दुओंपर लगी कानूनी निर्योग्यताएँ हटा दी गई हैं या नहीं? यदि ये निर्योग्यताएँ अभी नहीं हटाई गई हों तो क्या आपको इनके हटानेके लिए भी उतनी ही जोरदार दलीलें नहीं देनी चाहिए जितनी आप मौजूदा “दानवी” सरकार द्वारा भारतीयोंसे किये जानेवाले तथाकथित “गुलामों जैसे” व्यवहारके सम्बन्ध में देते हैं? यह “दानवी” सरकार जिस जातिकी है उस जातिने हिन्दुस्तानियोंके साथ वैसा अनुचित व्यवहार कभी नहीं किया जैसा अफगानिस्तानके मुसलमान शासकोंने हिन्दुओंके साथ किया है।
मैं समझता हूँ कि छुआछूतके सम्बन्ध में आपने जो कठोर रुख अपनाया है उससे, खिलाफतके समर्थनकी अपेक्षा, अधिक भलाई हो सकेगी। यदि आप हिन्दुओं में से छुआछूत और प्रान्तीय भेद-भावोंको मिटा सकें तो आप मानव-जातिके एक बहुत बड़े हित साधक होंगे। मुसलमान तो स्वयं इतने सशक्त हैं कि अपनी रक्षा आप कर सकते हैं।

आपका,
आर० सी० बनर्जी

रतनगंज,
२४ अक्तूबर, १९२१

अफगानिस्तानमें हिन्दुओंके साथ कैसा व्यवहार किया जाता है इसके बारेमें मुझे कुछ भी मालूम नहीं है, तथापि एक क्षणके लिए मैं इस पत्रके लेखकके कथनकी सत्यता स्वीकार करने के लिए तैयार हूँ। परन्तु इसकी संगति तब होती जब हम हिन्दुस्तानमें अफगान-शासन लानेकी कोशिशमें लगे होते। मेरा सम्बन्ध तो केवल भारतके मौजूदा कुशासनसे है जिसने मुझे घोड़ेपर चढ़ने देकर भी मेरी स्थिति अपने ही देशमें गुलामों-जैसी कर रखी है। मुझे यह डर दिखाकर इस कुशासनका तख्ता उलटनेसे भी नहीं रोका जा सकता कि यहाँ अफगान-शासन या कोई अन्य मुस्लिम शासन आ