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चिरला-पेरला

सिवा और कर ही क्या सकता है कि लोगोंपर अपने निर्णय लादनेकी कोशिश करे और यह दिखाये कि मुझे उनके मतकी जरा भी परवाह नहीं है।

अच्छा, अब हम यह देखें कि इस नगरपालिकासे जनताका कितना हित साधन हुआ। गाँव पहलेकी अपेक्षा ज्यादा साफ-सुथरा हुआ है, यह तो कहा ही नहीं जा सकता, क्योंकि लोगोंने खुद ही उस स्थानको असाधारण रूपसे अच्छी हालत में बना रखा है। अधिक शिक्षा-प्रचार भी नहीं हुआ, क्योंकि वहाँके लोग तो असहयोगी हैं। एक ही बात हुई कि और भी ज्यादा कर बैठाये गये और लोगोंकी स्वतन्त्रतामें और भी ज्यादा दस्तंदाजी की गई। यह बुराई लोगोंके लिए असह्य थी।

अतएव, उन लोगोंने निश्चय किया कि हम लोग नगरपालिकाकी हदको छोड़कर उसके बाहर पास ही खुली जगहमें जा बसेंगे। उन्होंने वहाँ झोंपड़ियाँ बनाईं और पिछली मईके आसपास चिरला-पेरला खाली करके लोग उनमें रहने चले गये। मन्त्रीने बेधड़क होकर मालगुजारीके महकमेंकी मदद ली और उस महकमेकी ओरसे यह कारण बताते हुए उनपर कर बिठा दिया गया कि तुम लोगोंने सरकारी बंजर जमीनपर अपने छप्पर डाले हैं। हर छप्परपर रु० १०-२-६ के हिसाब से कर बैठाया गया है, यद्यपि उनमें से प्रत्येककी कीमत कुल मिलाकर २५) ही है । कर अदा न करनेकी हालत में रहनेवालोंको अपनी झोंपड़ियाँ खाली कर देनी होंगी।

इस दमनके आरम्भका वर्णन आन्ध्र प्रान्तीय कांग्रेस कमेटीने इस प्रकारे किया है :----

"चिरला पेरलाके दमनके "सम्मान पत्रक" में वृद्धि हो रही है। नगरपालिका टैक्स देने से इनकार करनेके कारण १२ पुरुष और १ स्त्री तो पहले ही सजा काटकर बाहर आ चुके हैं। अब उसी सम्बन्धमें ३ पुरुष राजमहेन्द्रीकी सेन्ट्रल जेल में सख्त सजा भोग रहे हैं और छः आदमी कारावासके हुक्मकी बाट जोह रहे हैं। अनोखी बात तो यह है कि कैदकी सजा इन छः आदमियोंको एक माह पहले सुनाई गई थी पर रोक रखी गई। हमारे सुननेमें ऐसी कोई घटना नहीं आई जिसमें कि लोगोंको सजा तो ठोक दी जाये परन्तु जमानत तक तलब न करके उनसे चुपचाप कह दिया जाये कि घर जाओ और हुक्मका इन्तजार करो। चिरला पेरलामें और भी कितने ही लोग जेलोंको भर देनेके लिए तैयार बैठे हैं। संघर्ष प्रशंसनीय वीरता और दृढ़ताके साथ चलाया जा रहा है। यद्यपि गाँवोंके खाली कराये जानेसे कारोबार अस्तव्यस्त हुआ है और अधिक गरीब लोगोंकी आजीविका समाप्त हो जानेके फलस्वरूप बहुत बड़ी कठिनाई उत्पन्न हुई है।

सजायाफ्ता लोगोंकी जायदाद जब्त कर ली गई है और बपतला तथा गन्दूरमें कई बार नीलामपर चढ़ाई गई थी ताकि उसे बेचकर जुर्माने की रकम वसूल कर ली जाये। परन्तु इन दोनों स्थानोंमें से किसीमें भी किसीने बोली नहीं लगाई। चिरला-पेरलाके कष्ट सहनके कारण उनके प्रति लोगोंकी जो सहानुभूति आमतौरपर देखने में आ रही है उसका यह एक उज्ज्वल प्रमाण है।"

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