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१८४. परीक्षा

गुजरातकी परीक्षाके दिन नजदीक आ रहे हैं। महीने भी नहीं रहे, सिर्फ हफ्तोंकी बात है। कुछ ही समयमें दिनोंकी बात होने लगेगी और फिर घंटोंकी गिनती होगी।

एक ओर तो गुजरातको अ० भा० कांग्रेस कमेटीका अधिवेशन सम्पन्न करना है। देखना है कि हम अतिथि-सत्कार, व्यवहार-कुशलता व उदारतामें कम न निकलें।

दूसरी ओर गुजरातने असहयोगमें जो पहले कदम बढ़ाया है,[१] उसकी शोभाके योग्य काम करके दिखाना है। गुजरातको कमसे-कम एक तहसील तो ऐसी तैयार करनी चाहिए जो मौतकी गोदमें जानेके लिए तत्पर हो और वैसा सामर्थ्य भी रखती हो।

इसकी शर्तें मैं पहले ही लिख चुका हूँ। यह कहा जा सकता है कि महा समितिने भी उन्हें स्वीकार कर लिया है। ये शर्तें निश्चय ही कार्य-रूपमें परिणत की जा सकती हैं। परन्तु उन बातोंका भी विचार हमें कर रखना चाहिए, जिनके विषयमें प्रस्ताव तो नहीं हो सकता, परन्तु जिनके पाबन्द रहे बिना शर्तोंका पालन सम्भव नहीं है। जो व्यक्ति रेखा-गणितके सिद्धान्तको बिना समझे ही उसे रट डालता है वह अगर ‘बारह’ की जगह ‘बारहवाँ’ कह दे तो क्या आश्चर्य? जिसने रटा तो हो ‘इसलिए’ परन्तु कह जाये ‘क्योंकि’ तो फिर उसकी क्या गत हो? जिस प्रकार उसकी रटाईकी पोल खुल जाती है उसी प्रकार जो व्यक्ति बिना समझे ही समितिकी शर्तों के पालन करनेका दावा करता है, वह दरवाजेसे वापस लौटे बिना नहीं रहनेका। क्योंकि वह दरवाजेकी तरफ जाता तो है, पर उसके खोलनेकी तरकीब नहीं जानता।

यह लड़ाई ही धर्मकी है। इसे चाहे व्यवहार्य कहिए, चाहे आप अ-व्यवहार्य, राजनैतिक कहिए अथवा सांसारिक, इसका कुछ भी नाम रख दीजिए, पर इसका मूल धर्म है। धर्मकी खातिर, धर्मके नामपर, हम यह लड़ाई लड़ रहे हैं। अली-भाइयोंने बिलकुल पक्की बात कही। उन्होंने कहा है: “राज्यके कानून और ईश्वरके कानून, दण्ड-संहिता और ‘कुरान पाक’ में से किसीका चुनाव करना हो तो हम अपने ईश्वरको और अपने ‘कुरान’ पाकको ही पसन्द करेंगे।” यह लड़ाई तो इस बातकी है कि मुसलमान, हिन्दू, पारसी, ईसाई आदि सब अपने-अपने धर्मको जानें और उसके अनुसार बरतें। सब धर्मके खातिर मरें। जो मरता है वह पार होता है, जो मारता है वह मरता है। अगर दूसरोंकी हत्या करके कोई अपने धर्मका पालन कर सकता तो आज लाखों आदमियोंको मुक्ति मिल गई होती।

इसलिए हमें तो संकट के समयमें केवल ईश्वरको ही याद करना है। जिसे इतना विश्वास नहीं है उसकी गतिमें अन्ततः अवरोध उत्पन्न हुए बिना नहीं रह सकता। खोटा रुपया चाहे कितनी ही दूकानोंपर क्यों न चक्कर लगा आये, उसकी कीमत

 
  1. अहमदाबादमें २७, २८ और २९ अगस्त, १९२० को हुई गुजरात राजनीतिक परिषद्में। देखिए खण्ड १८।