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भाषण: लाहोरकी सार्वजनिक सभामें

रहना चाहिए। अगर कुछ औरतें वहाँ जाकर संगीनोंके सामने डट जायें और अपनी जेल जानेकी तत्परता दिखायें तो और भी अच्छा हो। मैं नहीं मानता कि वर्तमान सरकार इतनी बर्बर है। वह झुक जायेगी। लेकिन अगर सरकार पागलपनसे काम ले, तो आपको अपनी आनकी रक्षा करने और उसके लिए कष्ट उठानेको तैयार रहना चाहिए। अगर वैसा समय आ जाये, तो आपको दिखा देना चाहिए कि आप सिपाहियोंकी परवाह नहीं करते। अली-बन्धुओंको उनके मुकदमेके दौरान जब अपनी-अपनी कुसियोंपरसे उठनेको कहा गया तो उन्होंने इनकार कर दिया, किन्तु फिर जब अपनी मर्जी हुई, उन्होंने कुर्सियाँ छोड़ दीं और दोनों भाई अपने-अपने लबादे बिछाकर जमीन पर ही बैठ गये। आपको जरूरत सिर्फ पक्के साहसकी है। लेकिन, किसीको रातमें वह प्रतिमा हटाने के लिए नहीं जाना चाहिए। आपको सब-कुछ खुले-आम करना चाहिए। बल्कि आपको सरकारको पहले ही इस बातकी सूचना दे देनी चाहिए। कोई बारह वर्ष पहले रातमें किसी आदमीने वहाँ जाकर प्रतिमाको जूतोंकी माला पहना दी थी। किसीको ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए।

अगर आप अहिंसापर आग्रह रखते हुए काम करते जायेंगे तो जजीरत -उल-अरब और स्मर्ना भी मिल जायेंगे, थ्रोस और फिलिस्तीन भी मिल जायेगा। लेकिन अगर कोई हिन्दू, मुसलमान या सिख हत्या करे या मुँहसे अपशब्द भी निकाले तो उसे राष्ट्रका शत्रु मानना चाहिए। आपको अहिंसापर डटे रहना है। आपको अपने भीतर लछमनसिंह और दलीपसिंहका साहस सँजोना चाहिए, जो ननकाना साहबमें शहीद हुए। इसके विपरीत, महन्तको हत्यारा माना जाता है। आपको मरना सीखना चाहिए।

मैं ‘जमींदार’को[१] भी बधाई देना चाहता हूँ। पहले मौलाना जफर अली खाँ जेल गये, उनके पीछे उनका लड़का और फिर पत्रके एक तीसरे सम्पादक जेल गये। अब एक दूसरे सज्जन सम्पादकको हैसियतसे आये हैं, और मैं चाहता हूँ, वे भी जेल जायें। मैं चाहता हूँ मर्दोंका स्थान औरतें लें और कष्टसहन करें। आपको इसकी चिंता ही नहीं करनी चाहिए कि दण्ड प्रक्रिया संहिताके खण्ड १४४ या प्रेस एक्टके अधीन क्या-कुछ हो सकता है। मुझे आशा है कि जबतक सरकार ‘जमींदार’ का प्रेस जब्त न कर ले तबतक वह चलता रहेगा।

अन्तमें उन्होंने कहा कि तीन बातें हैं, जिनकी याद में आपको दिलाना चाहूँगा। एक है अहिंसा, दूसरी हिन्दू-मुस्लिम एकता और तीसरी चीज है चरखा।

[अंग्रेजीसे]
ट्रिब्यून, १२-११-१९२१
 
  1. एक दैनिक पत्र।