पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 21.pdf/४९३

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टिप्पणियाँ भविष्यमें क्या होगा ? इससे एक दूसरा प्रश्न मेरे सामने उपस्थित होता है। मेरे स्वप्नगत स्वराज्यमें तो शस्त्रास्त्रकी कतई जरूरत नहीं है। लेकिन मैं यह उम्मीद नहीं करता हूँ कि यह स्वप्न, इस वर्तमान प्रयत्नके फलस्वरूप, सोलहों आने सच्चा हो जायेगा । इसका पहला कारण तो यह है कि यह आन्दोलन इस ध्येयको तात्कालिक लक्ष्य बनाकर नहीं किया जा रहा है और दूसरा यह कि मैं अपनेको इतना आगे बढ़ा हुआ नहीं समझता कि राष्ट्रके सामने ऐसा विस्तृत व्यवहार-क्रम उपस्थित कर सकूं और वह उसके अनुसार उसकी तैयारी कर सके। मैं खुद भी अभी इतना विकार-ग्रस्त हूँ और मुझमें मनुष्य- स्वभावकी इतनी कमजोरियाँ हैं, जिससे मुझे ऐसी प्रेरणाका या क्षमताका अनुभव नहीं होता। अपने लिए मैं अगर किसी बातका दावा कर सकता हूँ तो सिर्फ इसी बातका कि मैं अपनी कमजोरियोंको दूर करनेका निरन्तर प्रयत्न रहा हूँ। मुझे विश्वास है कि मैंने अपनी इन्द्रियोंको दमन करने और वशमें करनेकी क्षमता बहुत- कुछ प्राप्त कर ली है; परन्तु अभी मैं इस लायक नहीं हुआ हूँ कि मुझसे कोई पाप बन न पड़े -- अर्थात् मैं इन्द्रियोंसे प्रभावित न हो सकूं । हाँ, मैं इस बातको मानता हूँ कि प्रत्येक मनुष्य ऐसी मंगलमय अवर्णनीय पापरहित अवस्थाको प्राप्त कर सकता है और उसमें, अपने अन्तःकरणमें, किसी अन्यकी नहीं वरन केवल एक परमात्माकी उपस्थिति अनुभव कर सकता है। और मुझे मंजूर करना चाहिए कि अभी वह अवस्था मुझसे बहुत दूर है। अतः मेरे लिए देशको पूर्ण अहिंसाके व्यवहारका कोई मार्ग बताना अभी सम्भव नहीं है । ४६१ रेल और तार जिस महान सिद्धान्तका विवेचन मैंने ऊपर किया है उसके मुकाबलेमें यह रेल और तारका प्रश्न बहुत ही नगण्य है। मैं खुद अपने लिए इन सुविधा-साधनोंसे परहेज नहीं कर रहा हूँ। मैं निश्चय ही न तो राष्ट्रसे इनका उपयोग छोड़ देनेकी उम्मीद करता हूँ और न स्वराज्य हो जानेपर उनका व्यवहार बन्द होनेकी अपेक्षा करता हूँ। लेकिन हाँ, स्वराज्यान्तर्गत राष्ट्रसे मैं यह जरूर चाहता हूँ कि वह इस बातपर विश्वास न करे कि इन सुविधा-साधनोंसे अवश्य ही हमारी नैतिक उन्नति होती हैं या ये हमारी भौतिक प्रगतिके लिए अनिवार्य हैं। मैं राष्ट्रको यह सलाह देता हूँ कि वह इन साधनोंका उपयोग कम मात्रामें करे और हिन्दुस्तान के साढ़े सात लाख गाँवोंमें तार और रेलका जाल बिछा देनेके लिए बुरी तरह लालायित न हो । राष्ट्र जब आजादीकी दमकसे दमकने लगेगा तब जान जायेगा कि हमारे शासकोंको उनकी आवश्यकता हमारे अज्ञान-अन्धकारको दूर करनेकी बनिस्बत हमें गुलाम बनाने के लिए ही अधिक थी। प्रगति तो लंगड़ी होती है। वह कूदती-फुदकती ही आ सकती है। आप उसे तार या रेलके द्वारा नहीं भेज सकते । पतित बहनें पाठक यह जानकर खुश होंगे कि बारीसालमें 'पतित बहनों' के सुधारका काम उत्साहसे शुरू कर दिया गया है। डाक्टर राय लिखते हैं कि हम कितनी ही बह्नोंके Gandhi Heritage Portal