पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 21.pdf/४९४

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४६२ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय घरोंमें जा चुके हैं और अब कताई शुरू करा रहे हैं। बाबू अश्विनीकुमार दत्त के स्कूलके निरीक्षक जगदीश बाबूने उन युवक कार्यकर्ताओंकी रहनुमाई करनेका वचन दिया है, जिन्होंने इस जवाबदेहीकी सेवाका भार ग्रहण किया है। मुझे आशा है कि जिन लोगोंने इस परम आवश्यक कार्यको अपने हाथमें लिया है वे इसे अधूरा ही न छोड़ देंगे। उन्हें बार-बारकी निराशाओंका सामना करनेके लिए तैयार रहना चाहिए और धीरे-धीरे प्रगति होनेकी उम्मीद करनी चाहिए। सिर्फ ऐसे ही कार्यमें, जिसमें न तो किसी तरहकी उत्तेजनाकी गुंजाइश है और न शीघ्र ही प्रसिद्धि मिलनेकी सम्भावना है, सच्चे सेवा-प्रेमकी परीक्षा होती है। मैं बारीसालके इस उदाहरणको इस लायक मानता हूँ कि दूसरे शहरोंके लोग भी उसका अनुसरण करें। यह आत्मशुद्धि- का काम तो स्वराज्यके बाद भी जारी रहेगा। हाँ, हरएक आदमी इसे नहीं कर ता। इसलिए सिर्फ वे लोग ही इस बढ़ते हुए पापाचारको मिटाने के लिए आगे बढ़ें जिनका दिल इसके लिए उत्सुक हो और जिनकी आत्मा काफी पवित्र हो । इस आन्दो- लनकी स्वभावतः दो शाखाएँ हैं -एक, पतित बहनोंका सुधार करना और दूसरी, पुरुषोंको इस पतनकारी पापसे विरत करना । इसी पापके कारण पुरुष अपनी इन बहनोंको कामुक दृष्टिसे देखते और उन्हें उसका शिकार बनानेके लिए ललचाते हैं । दोनों शाखाओंमें काम करने के लिए एकसे ही गुणोंकी जरूरत है। दोनों दिशाओं में साथ-ही-साथ काम होना चाहिए। तभी वह सफल हो सकता है । कारावासका प्रभाव डा० रायने अपने जिस पत्रमें बारीसालकी पतित बहनोंमें किये जानेवाले कार्यका वर्णन किया है, उसीमें वे लिखते हैं : पूर्वी बंगालमें हिन्दू-मुस्लिम एकता अब काफी मजबूत है और लोगोंमें विदेशी वस्त्रोंका बहिष्कार प्रायः पूर्णतापर पहुँच चुका है। पूर्वी बंगाल इन दोनों बातोंके लिए पीर बादशाह मियाँकी गिरफ्तारीका ऋणी है। हर दिशासे इसी तरहके प्रमाण मिल रहे हैं। किन्तु हमें निश्चिन्त होकर नहीं बैठना है। अभी भी करने के लिए बहुत काम बाकी है। एकता और बहिष्कार ये दोनों अभी कोमल पौधे-जैसे हैं। इनकी रक्षा आवश्यक है और उन्हें सावधानीसे सींचना जरूरी है। हिन्दू-मुस्लिम एकता हरेकको मजबूत करनी चाहिए और दोनोंको बिना किसी दिखावे के एक-दूसरेकी चुपचाप सेवा करने के लिए सदा तैयार रहना चाहिए । विदेशी वस्त्रोंका बहिष्कार केवल इसी तरह जारी रखा जा सकता है कि सभी लोग हाथसे कताई करने लगें, और कुटिया-कुटियामें चरखेका सद्भाव-संचारी संगीत गूंजने लगे। गाँवोंके हर मण्डलमें एक ऐसा विशेषज्ञ होना चाहिए जो सूतको ज्यादा मजबूत, इकसार और महीन बनानेपर जोर दे । भारतमें काफी जुलाहे हैं। यदि हम उन्हें हाथका कता अच्छा सूत दे सकें तो उससे मिलके सूत जैसी ही बुनाई हो सकती है। अकेले इस कार्यसे मिलके बने भारतीय कपड़ेकी कीमतें इतनी नीचे आ जायेंगी जितनी और किसी कार्यसे नहीं आ सकतीं । Gandhi Heritage Portal