पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 21.pdf/४९५

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टिप्पणियाँ एक रहस्यवादी द्वारा कताईकी प्रशंसा एक मित्रने मुझे हाथ-कताईपर जॉर्ज मैकडॉनल्डकी 'द प्रिंस एण्ड कर्डी' पुस्तकसे यह उद्धरण भेजा है: 46 'वह झिझक ही रहा था कि तभी उसे चरखेकी घूं-घूं सुनाई दी। इस आवाजको वह तुरन्त पहचान गया। क्योंकि बहुत पहले उसने अपनी माँके चरखेसे ही बहुत कुछ सीखा था, और वह अब भी उससे बहुत कुछ सोखता था। पहले-पहल उसने चरखेसे ही छन्द बनाना, गीत गाना और यह सोचना सीखा था कि उसके अन्तःकरणमें सब कुछ ठीक है या नहीं? अथवा उसे कमसे-कम इन सब बातोंमें उससे सहायता अवश्य मिली थी। इसलिए, चरखेके संगीतको सुनते ही पहचान जाना इसके लिए कोई आश्चर्य की बात नहीं थी। " चटगाँवका उपद्रव मेरे तारके' उत्तरमें प्रसन्न बाबूने विस्तृत विवरण भेजा है। इसे यहाँ दे रहा हूँ : यद्यपि लोगोंने पूर्णतया अहिंसाका पालन किया था, और गोरखोंने ही उनपर हमला करके मारपीट की थी, फिर भी नौकरशाहीने गिरफ्त में आने से बचनेका एक शानदार तरीका निकाला है। उसने धारा १४४के अधीन नेताओं, स्वयंसेवकों और बाहरके लोगोंके नाम अन्धाधुन्ध नोटिस जारी किये हैं। इनमें बताया गया है कि वे न तो सार्वजनिक रास्तोंपर जुलूस निकालें और न ही उनमें शामिल हों, और इसका कारण यह बताया है कि २० तारीखके जुलूसमें जो लोग शामिल थे उन्होंने पुलिसपर पत्थर बरसाये थे और अन्य हिंसात्मक कार्रवाइयाँ की थीं। इस तरहके नोटिस इसी २७ तारीखको जारी किये गये । उनमें यह कहा गया है कि मजिस्ट्रेटको जुलूसके बारेमें और पुलिसको लोगोंके प्रहार करनेपर जो चोटें आई उनके बारेमें पुलिस सुपरिटेंडेंटकी रिपोर्टसे २५ तारीखको ही जानकारी मिली थी । । कल भारतीय दण्ड संहिताको धारा १४४ और धारा १४७के अधीन खिलाफत कमेटीके अध्यक्ष मौलवी मुहम्मद काजिम अली, श्रीयुत कालीशंकर चक्रवर्ती, सम्पादक 'ज्योति' (स्थानीय बंगाली दैनिक) तथा प्रेमानन्द दत्त, सुखेन्दु- विकास सेन और मुहम्मद सिराजुल हक नामक स्वयंसेवकोंके खिलाफ एक झूठा मुकदमा भी किसी तरह बनाकर दायर कर दिया गया है। ये पाँचों अभियुक्त गिरफ्तार कर लिये गये हैं, जिनमें से दूसरे और पाँचवें अभियुक्त जमानत देकर बाहर आ गए हैं और बाकीने हवालात में ही रहना पसन्द किया है। प्रेमानन्द दत्त २० तारीखको ढाकामें थे और फिर भी उनका नाम अभियुक्तोंमें दर्ज है। १. देखिए " एक और गोरखा हमला ", ३-११-१९२१ । २. उपलब्ध नहीं हैं । Gandhi Heritage Portal