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भाषण : डिब्रूगढ़ में

हूँ । आपको जो आठ-नौ रुपया महीना मिलता है, उससे आप सुख और चैनसे नहीं रह सकते। आप जो शराब पीते हैं सो दुःखको भूल जानेके लिए पीते हैं। परन्तु दुःख मिटाने का सीधा-सा उपाय तो यह है कि आप दुःखको सहन करें; यदि गैर- इन्साफके साथ कोई जालिम सजा दे तो उसको खुशीसे स्वीकार करें। हिन्दुस्तानने इस उसूलको अभी अच्छी तरह नहीं समझा है। जब मैं यह समझ लूंगा कि हिन्दुस्तानको इसका पूरा इल्म हो गया है, बस उसी दिन हिन्दुस्तान स्वतन्त्र हो सकता है। आज हिन्दुस्तानमें कानूनका सविनय भंग शान्तिपूर्वक करनेकी ताकत नहीं है। मुझे आशा है कि यह ताकत अक्तूबर के पहले आ जायेगी। परन्तु यह ताकत शराब पीनेसे, वेश्यागमन करनेसे नहीं आ सकती। इसलिए शराब पीना छोड़ दो, वेश्यागमन छोड़ दो। इसका बड़ा गहरा अर्थ है। आप यदि किसी गन्दी चीजसे सम्बन्ध रखना नहीं चाहते तो पहले आप खुद शुद्ध हो जाइए।

हमको पता नहीं है कि हमारा देश शराब और अफीम पीनेकी अपेक्षा विदेशी व्यापार के कारण कितना अधिक गिर गया है। हमने विदेशी व्यापारकी गन्दगी और पापकी ओर नजर नहीं फेंकी। मेरे प्यारे भाई एन्ड्रयूज साहब[१] भी मुझसे पूछते हैं कि खुलना में कहतके होते हुए भी आप विलायती कपड़ा क्यों जलाते हैं ? हमें पता नहीं कि परदेशी कपड़ा पहनना कितना गुनाह है। आत्मशुद्धिके लिए, और दुनियाको आत्मशुद्धिकी पहचान बतानेके लिए, विदेशी कपड़ा छोड़ देना चाहिए। हिन्दुस्तान यदि इतना कर सके तो अक्तूबरतक वह आजाद हो सकता है।


डिब्रूगढ़ के मारवाड़ी भाइयोंसे मैं नम्रतापूर्वक कहना चाहता हूँ कि आप यदि असमकी सेवा करना चाहते हैं, यदि धर्मकी सेवा करना चाहते हैं-- और मैं जानता हूँ कि आपमें धर्मकी सेवाका ज्ञान है और धर्मके लिए प्रेम भी है -- तो आप विदेशी कपड़ेका व्यवहार छोड़ दें।

मुझे दुःख है कि असमकी इस आखिरी रातको डिब्रूगढ़में परदेशी कपड़ा जलानेका पवित्र काम करने की कोई तजवीज नहीं की गई। दुःखकी बात है कि डिब्रूगढ़ इतना भी यज्ञ नहीं कर सकता। क्या आप लोग मैलको भी जलानेसे डरते हैं ?

आप यदि मजदूरोंके दुःखको मिटाना चाहते हैं, स्त्रियोंकी पवित्रता और हिन्दुस्तानकी प्राचीन सभ्यताकी रक्षा करना चाहते हैं तो विदेशी कपड़ा जला दीजिए। इतनी दूर-दूरसे मजदूर लोगोंको यहाँपर क्यों आना पड़ता है ? इसका कारण मैं यही समझता हूँ कि उन्होंने चरखा छोड़ दिया है। किसानोंने भी चरखा छोड़ दिया है। इधर खेतीमें काफी पैदायश नहीं होती। इसलिए १० लाख लोग असम में बाहरसे आये हैं । यह हमारे पापकी निशानी है।

"परमेश्वर हमको विदेशी कपड़ेका त्याग करनेकी और हमारी स्त्रियोंकी लाज बचानेकी शक्ति दें", ऐसी प्रार्थना करता हुआ मैं अपना भाषण खत्म करता हूँ।

हिन्दी नवजीवन, ९-९-१९२१
  1. सी०एफ० एन्ड्यूज (१८७१ - १९४० ); अंग्रेज धर्म-प्रचारक जिनकी मानवतापूर्ण सेवाओंके कारण भारतवासी उन्हें " दीनबन्धु " के नामसे पुकारने लगे।