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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आप लोगोंतक पहुँचती है तो जो मजदूर लोग यहाँपर आये हों वे अपना हाथ ऊँचा उठा दें। मैं देखता हूँ कि इस जलसेमें बहुत कम मजदूर आये हैं।

मुझे उम्मीद थी कि यहाँपर मजदूर भाइयोंसे भी मेरी मुलाकात हो जायेगी। मैंने अपनी जिन्दगीके कमसे कम बीस साल आफ्रिकामें मजदूरोंके साथ बिताये हैं। हिन्दुस्तान में भी मैं जहाँ-जहाँ जाता हूँ, मजदूरोंकी जानकारी रखता हूँ। असममें मजदूरोंकी हालत कैसी है, यह मैं नहीं जानता। बागान मालिकोंके प्रतिनिधियोंसे कल मैं बातचीत कर लूंगा। परन्तु में उम्मीद करता था कि उसके पहले मैं अपने मजदूर भाइयोंसे भी बातें कर लूं। मैं जिस कामके लिए इस तरफ आया हूँ उसने मेरा इतना वक्त ले लिया कि मैं बागीचोंमें जाकर मजदूर भाइयोंसे बातचीत न कर सका। इस बातका मेरे मनमें अफसोस ही रह जायेगा। परन्तु इस अफसोसके साथ असमको छोड़ते हुए भी मैं इस खयालसे धैर्य रखे हूँ कि जिस कार्य को मैंने हाथमें लिया है उसमें यदि ईश्वर सफलता दे दे तो फिर मजदूरोंके पास जाना ही न पड़े। हिन्दुस्तान के लोगोंका दुःख मिट जाना चाहिए अन्यथा स्वराज्यके कोई मानी नहीं हैं। एक छोटेसे छोटा मजदूर या चायके बागीचेमें काम करनेवाली बालिका, काश्मीरसे लेकर कन्याकुमारीतक, आजादी के साथ घूम-फिर सके और एक भी बदमाश उसे तकलीफ न दे सके, ऐसा स्वराज्य जबतक न होगा तबतक वह "स्वराज्य" हो ही नहीं सकता। यह जो लड़ाई शुरू है इसका कारण यही है कि अंग्रेजी राजसे हिन्दुस्तानका भला नहीं हुआ है। अब मैं छोटी-छोटी बातोंमें नहीं फँस सकता। मैं कुछ दिनोंतक ऐसा समझता था कि मुहब्बत के साथ सब कुछ अच्छा हो जायेगा। परन्तु पंजाबके अनुभवसे और मुसलमानोंके साथ इन्साफके नामपर जो अत्याचार किया गया है उससे मैं समझ गया कि ऐसा अन्याय दूसरी सल्तनतमें नहीं हो सकता। और तभीसे मैं इस सल्तनतको "शैतानी" सल्तनत कहने लगा।

अगर हम शैतानियतको मिटाना चाहते हैं, यदि मजदूरोंके दुःखोंको कम करना चाहते हैं और औरतोंपर होनेवाले अत्याचारोंको नष्ट करना चाहते हैं तो कोई शक्ति ऐसी नहीं है जो हमें रोक सके।

यदि हमारा ईश्वरपर विश्वास कम न हो जाता तो हिन्दुस्तानमें कंगाली न छा जाती।

हमारा संघर्ष दुश्मनीका नहीं है। इतना अवश्य है कि हम किसीकी सरदारी कुबूल करना नहीं चाहते। ईश्वरके सिवा और किसीको हम अपना सरदार नहीं समझते। यही स्वराज्यके मानी है। जिस सल्तनतमें झूठका बोलबाला है, अत्याचार किये जाते हैं, झूठे खरीते भेजे जाते हैं, उससे मुहब्बत करना हराम समझना चाहिए। इसलिए हम इस सरकारकी अदालतोंसे न्याय नहीं चाहते, उसके मदरसोंमें लड़के नहीं पढ़ाना चाहते और इसीको हम तर्फे मवालात -- असहयोग-कहते हैं। हम किसीको दंगा-फिसादके लिए नहीं कहते। हम ईश्वरका नाम लेकर, शान्तिपूर्वक स्वराज्य प्राप्तकर सकते हैं, और मुसलमानों के घावोंको सुखा सकते हैं।

'आत्मशुद्धि' क्या चीज है, यह हमको अच्छी तरह समझ लेना चाहिए। आप शराब, गांजा, अफीम और वेश्यागमन छोड़ दें। मैं मजदूरोंकी आदतोंसे खूब वाकिफ