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१३. पत्र : सरदार वल्लभभाई पटेलको

सिलहट
असम
[ ३० अगस्त, १९२१]

[१]

भाईश्री वल्लभभाई,

आपका पत्र मिला। मैंने आज जो तार[२] दिया है उसकी नकल भी भेजता हूँ। अगर हममें शक्ति है तो मैं तो यही कहूँगा कि वे[३] जबतक अहमदाबादमें रहें तबतक ही हड़ताल रखी जाये और गरीब लोगोंको जो सामान चाहिए, उसके मिल सकनेका बन्दोबस्त किया जाये। इसका परिणाम मार्शल लॉ हो सकता है। उसे हम बरदाश्त करें और मर जायें। परन्तु ऐसा लगता है कि इतना तो हमसे नहीं हो सकेगा। इतनी शक्ति हममें नहीं आई है। इसलिए हम उतना ही करें जितना हमसे हो सके। लोगोंको यह समझा दें कि हम उनके साथका सम्बन्ध किस तरह बन्द कर सकते हैं। नगरपालिका जितना सम्बन्ध तोड़ सके उतना तोड़े। उन्हें कोई सलाम न करें। जो विद्यार्थी सरकारी पाठशालाओंमें पढ़ते हैं, वे भी उनके पाठशालामें आनेपर न उठें। हममें जोर हो तो उनके दफ्तरपर पहरा लगाकर लोगोंको जानेसे रोका जा सकता है। इसके अलावा भी अपनी नापसन्दगी सभ्यतापूर्वक बतानेके अन्य अनेक रास्ते सूझ जायेंगे। उन्हें अपनाकर हमें अपनी स्थिति प्रकट करनी चाहिए। मेरी सलाह है कि उनके बहिष्कारका सारा कार्यक्रम हम आजसे ही घोषित कर दें और लोगोंको भी शान्ति किन्तु दृढ़तासे काम लेनेकी तालीम दें। वे प्रिन्स आफ वेल्सके नाते अहमदाबादमें रुआब न दिखा सकें, इतना करनेकी हममें ताकत होनी चाहिए।

इससे ज्यादा यहाँ बैठा हुआ मैं नहीं कह सकता। इतना जरूर कहूँगा कि बूतेसे बाहर कुछ न करें। यह जरूरी है कि हम पीठ न दिखायें। हमारे बहिष्कारका आग्रह रखनेसे अशान्ति होनेकी सम्भावना हो, तो मेरी सूचनाओंका अमल मुलतवी रखें।

आपने स्वागत-समितिका[४] अध्यक्ष-पद स्वीकार किया सो ठीक ही हुआ। जब हमने सेवाको ही धर्म माना है, तब ऐसी सम्मानकी उपाधियाँ भी हमें गिरा नहीं सकतीं।

मोहनदास के वन्देमातरम्

[ गुजराती से ]
बापुना पत्रो - २ : सरदार वल्लभभाईने
  1. डाक-मुहर की तारीख।
  2. देखिए पिछला शीर्षक।
  3. प्रिन्स आफ वेल्स।
  4. अहमदाबादमें होनेवाली कांग्रेसकी।