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इस्तगासोंका एक नमूना

एक मित्रने मुझे नागपुरके पण्डित राधामोहन गोकुलजीपर जारी किये गये नोटिसकी नकल भेजी है। नोटिस में कहा गया है कि या तो वे नेकचलनीके लिए मुचलका दें या जेल जाने के लिए तैयार रहें। पण्डितजी इन दिनों जेलमें बन्द हैं। नोटिस के साथ कुछ उद्धरण भी जोड़े गये हैं जो उनके समय-समयपर दिये गये भाषणोंसे लिये गये बताये जाते हैं। इन उद्धरणोंको मैंने बार-बार पढ़ा है। अब मैं उन्हें पाठकों के सामने उसी क्रममें पेश करता हूँ जिस क्रममें वे उक्त नोटिस में दिये गये हैं :

२० जून, १९२१ का सिवनीका भाषण

१. हम एक जुल्मी सरकार के खिलाफ लड़ रहे हैं।देखें... यह जुल्मी सरकार कबतक हमपर मुकदमे चलाती है ? पश्चिम के लोग ... ईसाई नहीं हैं।

२. जबतक हिन्दुस्तानकी सारी जेलें हिन्दुस्तानियोंसे भर नहीं जातीं तबतक हम अपना मकसद हासिल नहीं कर सकते। एक भी बालक जबतक जीवित है ... तबतक हमारी यह आजादीकी लड़ाई जारी रहनी चाहिए।

३. जिस समय रोमके लोग इंग्लैंडपर राज्य कर रहे थे वे क्रूर और विचारशून्य हो गये। उन्होंने एक बार रानी बॉडीसियाको कोड़े लगाये; नतीजा क्या हुआ -- आज रोमके साम्राज्यका कहीं पता नहीं है।

४. इस राक्षसी सरकारके इन गुलामखानों (स्कूलों) को बन्द कर दो।

५. भारतीयोंके लिए अलग कानून है और यूरोपीयोंके लिए अलग। ऐसी हालत में हम यह कहे बिना नहीं रह सकते कि सरकार बेईमान है और वह जनताका भला नहीं चाहती।

६. जबतक आप इस जुल्मी सरकारसे लड़ रहे हैं तबतक बच्चे पैदा न करें।

२१ जून, १९२१का सिवनीका भाषण

१. इसके बाद उन्होंने असहयोग आन्दोलनका उल्लेख किया और कहा कि इस आन्दोलनके द्वारा रक्तहीन क्रान्ति की जा सकती है, इस अन्यायी सरकारको भंग किया जा सकता है और स्वराज्य प्राप्त किया जा सकता है।

२. जो सरकार ऐसी बेईमानी कर सकती है उसका नाश करना हमारा कर्त्तव्य है।

३. इस सरकारको हमने जो पैसा दिया और जो आदमी दिये उसका बदला हमें क्या मिला ? रौलट कानून, जिसमें न अपीलकी गुंजाइश है, न बहस की।

४. आज हमारे ऊपर 'इम्पीरियल प्रिफरेन्स' लावा जा रहा है जिसके कारण न तो हम ब्रिटिश साम्राज्य के बाहर के देशोंसे उनका माल सस्ते भावपर खरीद सकते हैं और न अपना उन्हें ज्यादा अच्छी कीमतपर बेच सकते हैं।