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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और चूंकि अभी काफी समय है इसलिए इस उद्देश्यको ध्यानमें रखकर गुजरातकी प्रान्तीय कांग्रेस कमेटीको कांग्रेसकी कार्यकारी समितिसे इस बातकी इजाजत ले लेनी चाहिए कि यदि श्री पेण्टर अधिकारीकी हैसियतसे गुजरात भेजे जाते हैं तो प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी सारे गुजरातमें हड़ताल करा सकती है। यह कहने की जरूरत नहीं कि यदि यह हड़ताल जरूरी हो जाये तो वह सर्वथा स्वेच्छाप्रेरित होनी चाहिए। मजदूर लोग उसमें मालिकोंको पूर्व-सूचना देकर और उनकी अनुमति लेकर ही शामिल हों।

ढोंगका पर्दाफाश

सरकारी चिट्ठियाँ अभीतक अपनी बात बिना किसी रुकावटके नपे-तुले ढंगसे पेश करती रही हैं; यह उनकी एक विशेषता रही है। अधिकारीका मंशा बुरा-भला कहनेका, रोष दिखानेका रहा हो, तो भी ऐसा खुलकर कभी नहीं किया गया; उसे अत्यन्त संयमित भाषामें लपेटकर ही प्रस्तुत किया गया है। लेकिन अधिकारियोंने अब इस नकाबको उतार फेंका है और इसके बजाय कि उनका अभिप्राय उनके कार्योंके द्वारा ही प्रकट हो वे भी सामान्य मनुष्योंकी तरह अपनी खुशी और नाराजी खुलकर शब्दोंमें व्यक्त करने लगे हैं। यह फर्क मैंने असम प्रदेशके सरकारी अधिकारियोंके पत्र-व्यवहारमें तो देखा ही था लेकिन इसका बहुत ही उचित उदाहरण गुजरातमें भी मिला है। 'प्रजाबन्धु' पत्रके सम्पादकने नमक और आबकारीके डिप्टी कमिश्नरको एक पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने उनका ध्यान उनके मातहतों द्वारा धरना रोकने के सिलसिले में बरती गई अनियमितताओंकी ओर खींचा था। सम्पादकके इस पत्रमें ऐसी कोई बात नहीं थी जो बुरी लगे। उन्होंने सीधी सरल सभ्य भाषाका ही उपयोग किया था। कोई विवाद खड़ा करनेकी कोशिश नहीं थी; सिर्फ एक सवाल पूछा था। लेकिन डिप्टी कमिश्नर तो धरनेसे नाराज हुए बैठे थे; उन्हें अपने दिलका गुबार निकालनेका मौका मिल गया और वह उन्होंने इस तरह निकाला :

आपने मुझे अपने अखबारका उद्धरण भेजा है और आग्रहपूर्वक जवाब चाहा है इसलिए जवाब भेजता हूँ। [ शराबकी दुकानोंपर ] धरना देनेका आपका यह तथाकथित अभियान सरकारको नुकसान पहुँचाने के घोषित उद्देश्यसे ही किया जा रहा है; उसे जनताके हितकी दृष्टि से किये जा रहे सामाजिक कार्यका नाम नहीं दिया जा सकता। यह तो हाथीको नहलाने-जैसी बात है। मेरी जानकारी तो यह है कि आपके इस अभियान में हिस्सा लेनेवालोंकी -- धरना देनेवालोंकी -- हिंसा के कारण अहमदाबादके आबकारी विभागके कर्मचारी, जिन्हें अपना सामान्य कर्त्तव्य तो करना ही पड़ता है, शान्ति और व्यवस्था बनाये रखनेके काममें इतने ज्यादा व्यस्त हो गये हैं कि अनुमति-पत्रोंकी शर्तोंके प्राविधिक भंगसे सम्बन्धित आपकी शिकायतोंकी जाँच-पड़तालके लिए उनके पास समय ही नहीं बचता। में तो ऐसा मानता हूँ कि आप यह शिकायत (जिसे विभाग निराधार मानता है) सरकारी अधिकारियोंको और ज्यादा हैरान करनेके लिए ही कर रहे हैं और में ऐसे किसी प्रयोजनकी सिद्धिके लिए तो अपनी सत्ताका