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धारवाड़ के इस कलेक्टरको गुजरातपर थोपकर उसका जो अपमान किया जा रहा है, गुजरात उसके खिलाफ समुचित ढंगसे अपनी नाराजी व्यक्त करेगा। अगर यह नियुक्ति सचमुच की जाती है तो गुजरातको यह दिखानेका एक अद्वितीय मौका मिलेगा कि असहयोगकी भावना के अनुसार ऐसे किसी अपमानका जवाब किस तरह दिया जा सकता है। हमें व्यक्ति और कमिश्नरमें फर्क करना चाहिए। हमें कमिश्नरका तो बहिष्कार करना है किन्तु व्यक्ति के रूपमें श्री पेण्टरको अपनी सेवा अवश्य देनी है। इसलिए शारीरिक आराम और सुविधाकी दृष्टिसे एक व्यक्ति के रूपमें श्री पेण्टरको समुचित मर्यादाके भीतर जिन वस्तुओंकी आवश्यकता हो सकती है, वे वस्तुएँ तो हम उन्हें लेने देंगे लेकिन अपने पद और उसकी शानकी रक्षाके लिए, अगर जनता हमारे साथ है तो, उन्हें एक तिनका भी नहीं मिलेगा। इसलिए हमें लोगोंको यह सिखाना होगा कि वे कमिश्नर पेण्टरको सलाम करनेसे इनकार कर दें। वे कमिश्नरको अर्जियाँ न भेजें। कमिश्नरकी तरह जब वे देहातोंका दौरा कर रहे हों तो लोग उन्हें किसी भी तरह की सुविधा न दें। शान्तिपूर्वक और शिष्टतापूर्वक हमें उन्हें यह महसूस करा देना है कि सरकारी अधिकारीके रूपमें गुजरातमें लोग उन्हें पसन्द नहीं करते। जिन नगरपालिकाओं में असहयोगी हों उन्हें श्री पेण्टरको कमिश्नरके रूपमें किसी तरहकी मान्यता नहीं देनी चाहिए। अगर हममें सच्ची स्वतन्त्रताकी भावना और पुरुषोचित वीरता आई है तो हम एक ऐसे अधिकारीको कदापि सहन नहीं करेंगे जिसने लोगोंका आदर खो दिया है। श्री पेण्टरने यह आदर खो दिया है। उदाहरण के लिए, यदि हमारे ऊपर कर्नल फ्रैंक जॉनसन या कर्नल डायर[१] थोप दिये जायें और हम इसे सह लें तो हमारे बारेमें क्या कहा जायेगा। स्वशासनकी अपनी क्षमता प्रमाणित करने के लिए हमें कुछ कठिन परीक्षाओंमें उत्तीर्ण होना चाहिए। एक परीक्षा यह है कि हम राष्ट्रीय अपमानकी कोई बात सहनेसे इनकार करें। सच तो यह है कि यदि यह क्षमता काफी मात्रा में हम प्राप्त कर चुके होते तो मैं उन कर्मचारियोंसे, जिन्हें सीधे श्री पेण्टर के नियंत्रण में काम करना होगा, इस परिस्थितिके खिलाफ अपना विरोध जाहिर करने के लिए इस्तीफा दे डालनेकी उम्मीद करता। हमें अपनी जीविकाके चले जानेका भय इतना ज्यादा है कि राष्ट्रीय अस्तित्व के लिए जो स्वाभिमान जरूरी होता है उसकी अपेक्षा नौकरीमें लगे हुए अपने देशवासियोंसे हम अभी कर ही नहीं सकते; उनमें तो यह भावना सबसे बादमें ही आयेगी । लेकिन यदि जनतासे हमें अपनी माँगका पर्याप्त उत्तर मिला तो इसी वर्ष में स्वराज्यकी प्राप्तिके हमारे ध्येयमें नौकरीवालोंकी अनिच्छा के कारण कोई खास बाधा नहीं आयेगी। समय आ गया है जब कि लोगोंको व्यक्तिशः और संघशः अपने अधिकारोंका आग्रह करना चाहिए; उनकी रक्षाके लिए अपनी ताकत लगानी चाहिए। और हमें अपने इस संघर्षका आरम्भ, अगर यह अधिकारी आता है तो, जिस समय वह अहमदाबाद आये उस समय, शहरमें सम्पूर्ण हड़ताल मनाकर करना चाहिए; अलबत्ता हड़ताल बिलकुल अनुशासित होनी चाहिए।

२१-५
 
  1. रेजिनाल्ड एडवर्ड हैरी डायर (१८६४-१९२७ ); अमृतसर क्षेत्रके कमाण्डिंग आफिसर जिन्होंने जलियाँवाला बागमें एकत्र हुई शान्त जनतापर गोलियाँ चलानेका हुक्म दिया था।