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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नों) का समूल नाश करनेकी टर्की-नीतिसे अपनेको अलग घोषित किया है, इसमें मुझे सन्देह है। इन शहीदोंका खून ईश्वरसे न्यायकी पुकार करेगा, और जो प्रभु एक गौरेयाकी भी खोज-खबर रखता है, वह टर्कीके इन अपराधों में से एक भी भूलेगा नहीं। यदि यह सत्य है कि टर्कीका इतिहास लूट-पाट और हत्याओंका इतिहास है, तो क्या उससे उसकी शक्ति छीन नहीं लेनी चाहिए ? वह ऐसी शक्ति रखने के योग्य नहीं है। यदि राजनीतिक सत्ताका उपयोग, अधिकृत जातियोंके लिए न्याय, स्वतन्त्रता और भ्रातृत्व बनाये रखनेके लिए नहीं बल्कि अत्याचार, उत्पीड़न, समूल नाश, लूटपाट और खून-खराबीके लिए किया जाता हो, तो क्या अन्य राष्ट्रोंको ऐसे राष्ट्रके अन्यायोंका प्रतिकार करनेके लिए उसकी दुष्ट सत्ता समाप्त नहीं कर देनी चाहिए ? इस्लामकी राजनीतिक सत्ता छीननेका अर्थ उसे उसकी आध्यात्मिक शक्तियोंसे वंचित करना नहीं है, बशतें कि कोई आध्यात्मिक शक्ति उसमें हो। यदि उसमें आध्यात्मिक शक्तियाँ हैं तो उनके बलपर वह जिये। यदि नहीं है तो उसे मर जाने दीजिए। किसी भी धर्मके लिए राजनीतिक सत्ता अभिशाप है, और इतिहास बताता है कि इस शक्तिका उपयोग अक्सर अत्याचारके लिए किया गया है, उदाहरणार्थं रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा।

मैं नहीं जानता कि असहयोगियोंके उद्देश्य ठीक-ठीक क्या हैं, लेकिन लगता यही है कि उन्हें देशमें एक भी अंग्रेज अधिकारीकी उपस्थितिपर आपत्ति होने लगी है। रोमका निर्माण एक दिनमें नहीं हो गया था, और किसी देशकी परिस्थितियाँ अनुकूल हों, उससे पहले ही उसका भावी संविधान नहीं बनाया जा सकता। मान लें कि तमाम ब्रिटिश अधिकारी बोरिया-बिस्तर समेटकर कल ही भारतसे चले जायें, और उनकी जगह भारतीय लोग ले लें, तो क्या जितना शुद्ध प्रशासन अब है, उतना ही शुद्ध वह रहेगा ? क्या आपके महान देशकी अदालतोंके जरिये सभी जगह न्याय किया जायेगा ? जहाँतक मैं समझता हूँ, भारतीय लोग देशी पुलिससे डरते हैं और पुलिसके भारतीय अधिकारी लोगों में घूसखोरी और भ्रष्टाचारकी प्रवृत्ति बहुत ज्यादा है। इससे पहले किसी जातिको स्व-शासनका अधिकार मिले, उसमें एक राष्ट्रीय चरित्र होना आवश्यक है, जिसकी बुनियादपर, और जिसकी सहायता से स्व-शासन स्थापित किया जा सके। क्या आप समझते हैं कि अब ऐसा समय आ गया है कि जब नवशक्ति प्रदान करनेवाली और शुद्ध करनेवाली शक्तियाँ आपके देशके सामाजिक, शैक्षणिक और राजनीतिक जीवनमें व्याप्त हो गई हैं ?

राजनीतिक प्रचार यदि क्रान्तिकारी ढंगका हो तो आसानीसे नीचतम और दुष्टतम लोगोंको अपनी ओर खींच सकता है, और यदि ऐसे लोग संगठन-यन्त्रपर कब्जा जमा लें, तो उनकी बात सुनने-माननेवाले लोगोंको ये अन्धे और