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४०. तार:जमनादास द्वारकादास और हृदयनाथ कुँजरूको[१]

[२३ दिसम्बर, १९२१ या उसके पश्चात्]

अब भी बिना शर्त किसी भी सम्मेलनमें शामिल होनेके लिए तैयार। क्या आपको नहीं लगता कि आपत्तिजनक विज्ञप्तियाँ वापस लेने और कैदियोंको रिहा करनेपर कोई कार्रवाई बन्द करनेके लिए नहीं रहती? क्या आप कोई बता सकते हैं? परन्तु विज्ञप्तियों के वापस न लिये जाने और असहयोगियोंकी रक्षात्मक कार्रवाई जारी रहने पर भी मैं व्यक्तिगतरूपसे शामिल होनेके लिए तैयार हूँ। काश आप समझ सकें कि शिष्टमण्डल गलत रास्तेपर ले जाया गया।

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ७७३०) की फोटो-नकलसे।

  1. यह जमनादास द्वारकादास और हृदयनाथ कुँजरूके २२ दिसम्बर, १९२१ को कलकत्तासे भेजे गये तारके जवाब में दिया गया था और गांधीजीको २३ दिसम्बरको मिला था। तारके कुछ अंश इस प्रकार हैं: "पण्डित मदनमोहन मालवीयके नाम प्रेषित आपके तारको पढ़कर बहुत दुःख हुआ। मैत्रीपूर्ण समझौतेकी सारी आशाएँ ध्वस्त … आपका आश्वासन था आप सम्मेलनमें शामिल होनेकी कोई शर्त नहीं रखेंगे … हमें भरोसा था आप यह सुझाव नहीं ठुकरायेंगे कि सम्मेलन होनेतक दोनों पक्षोंकी कार्रवाई बन्द रहेगी … वाइसरायके भाषणले कोई पूर्णतः सहमत न भी हो फिर भी उसका स्वर और स्वरूप बहुत ही सद्भाववर्धक है। उन्होंने केवल अस्थायी शान्तिकी माँग की थी … दोनोंमें से कोई भी पक्ष आवश्यक प्रारम्भिक शर्तके रूपमें दूसरेसे अपनी गलती माननेका आग्रह न करे तो सम्मेलन अब भी सम्भव … हार्दिक प्रार्थना मामलेपर फिर विचार करें … मालूम हुआ है बंगाल ऐसा मार्ग अपनानेके पक्षमें। निर्णयपर पुनर्विचार करें और देश में शान्ति स्थापित करें। खयाल है अनिवार्य प्रारम्भिक शर्तें मान ली जायें तो सम्मेलनकी विचारणीय बातों, रचना आदिका निर्णय सुगम। … आप समझते हैं दण्डविधि संशोधन अधिनियम और राजद्रोहात्मक सभा अधिनियमका प्रयोग सरकारके लिए विशेष रूपसे अनुचित क्योंकि उसने इनको रद करनेका वादा किया था। वास्तवमें वर्तमान परिस्थितियोंको देखते हुए सरकारने दण्डविधि संशोधन अधिनियम भाग दो को रद करनेसे इनकार कर दिया और राजद्रोहात्मक सभा अधिनियम रद करनेका निर्णय भी यह देखनेके लिए मुल्तवी कर दिया कि संसदके अगले अधिवेशनतक देश में वातावरण सुधरता है या नहीं।…"