१०२. पत्र: देवदास गांधीको
मंगलवार [२४ जनवरी, १९२२][१]
तुम्हारे तार मिले। शेरवानीको [वकीलोंकी सूचीसे] खारिज कर दिया गया, यह ठीक ही हुआ। जबतक देशका कार्य-भार हमारे हाथमें नहीं आ जाता तबतक क्या वे वकालत करनेवाले हैं?
मैंने श्री घोषको तुम्हारे तारकी नकल भेज दी है। तुम उन्हें पहलेसे लिखकर [और समय लेकर ही] उनके पास जाना और सब कुछ स्पष्ट रूपसे कह देना। मैंने उन्हें पत्र लिखा है; उसकी नकल तुम्हें भेज रहा हूँ।
हममें यदि मलिनता है तो उसका छिपाया जाना बिलकुल उचित नहीं है।
गुरुवारकी रातको बारडोली के लिये रवाना हो रहा हूँ। बादमें तो अधिकतर वहीं रहना होगा।
बापूके आशीर्वाद
गुजराती पत्र (एस० एन० ७६५६) की फोटो नकलसे।
१०३. टिप्पणियाँ
एक अंग्रेज महिलाका आशीर्वाद
“एक अंग्रेज महिला” ने कलकत्तेसे एक पत्र भेजा है। उसम उन्होंने अपना नाम और पता भी दिया है। वे लिखती हैं:
- श्री गांधी जिस अनोखे ढंगसे हमें सत्यका दर्शन करा रहे हैं और हमारी आँखें खोलकर हमें अपनी उदार कहलानेवाली सरकारके वे काले कारनामे देखनेका अवसर दे रहे हैं जो वह रोज कर रही है, उसे देखकर मन मुग्ध हो जाता है। एक “अंग्रेज धर्म-प्रचारक” ने जो पत्र उन्हें भेजा है वह भी प्रशंसनीय है।[२] मेरा खयाल है कि ऐसे और भी कितने ही लोग होंगे; पर अभिमानवश वे गांधीजीके उच्च कार्यको मानने के लिए तैयार नहीं हैं। उनका धैर्य और कार्य भूतलमें छिपे हुए झरने की तरह है। दुनिया उन्हें चाहे जो उपदेश देती