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भाषण : सूरतकी सार्वजनिक सभामें

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तो उसे खादीकी धोती भारी लगती है । यद्यपि अस्पृश्योंके प्रति हमारा तिरस्कारका भाव कम होता जा रहा है, फिर भी हम उन्हें सगे भाईकी तरह गले लगाने के लिए तैयार नहीं हैं । यदि उनमें से किसीको साँप काट ले तो हममें से कितने ही लोग प्रेमपूर्वक उसका विष चूसनेके लिए तैयार नहीं हैं। यदि उनको ज्वर आये तो जैसे हम अपने भाई-बहन और माँ-बापकी सेवा करते हैं वैसे उनकी सेवा करने के लिए हममें से कितने लोग तैयार हैं ?

हम सरकारको गाली क्यों दें? यदि हमें गाली देनी हो तो अपने-आपको ही देनी चाहिए, क्योंकि बहुत-सी ठोकरें खानेपर भी हम अभीतक होशमें नहीं आये हैं, हमने अभीतक पूरी आत्मशुद्धि नहीं की है, पूरा स्वार्थ-त्याग नहीं किया है और पूरा त्यागभाव नहीं दिखाया है। मुझे बहुत बार लगता है कि जबतक हम सामूहिक रूपसे मरने का साहस नहीं दिखाते तबतक हमारे भीतरका अनेक प्रकारका दुर्भाव और भय दूर न हो सकेगा। अभी हमारे ऊपर पूरे कष्ट नहीं आये हैं, इसलिए मैं अपने लिए और गुजरात के लिए ईश्वरसे प्रार्थना कर रहा हूँ कि वह हमारे ऊपर अन्य प्रान्तोंके लोगोंके कष्टोंसे अधिक बड़े कष्ट डाले । इन कष्टोंके अन्तमें जो नवीन भारत पैदा होगा वह रहने लायक होगा। ऐसा साहस दिखाकर ही हम उन घावोंको, जो हमारे मुसलमान भाइयोंके दिलोंमें हो गये हैं, भर सकेंगे और पंजाबके मामलेमें न्याय प्राप्त कर सकेंगे । स्वराज्य प्राप्त करनेका मार्ग भी यही है ।

इसलिए यदि सरकार मुझे पकड़ ले तो कोई परवाह नहीं । उससे हमारे मनमें दुःख नहीं होगा । उससे हम अशान्त नहीं होंगे। उससे हम पागल नहीं बनेंगे। मैं तो आशा करता हूँ कि जब ऐसा होगा तभी हमारी शेष कमजोरियां भी दूर हो जायेंगी । तब स्वयंसेवकोंकी पंजिकाएँ आप भाइयों और बहनोंके नामोंसे भर जायेंगी । तब आप सभी लोग हाथ-कते सूतकी और हाथसे बुनी खादी पहनने लग जायेंगे और बिलकुल निर्भय बन जायेंगे ।

सूरतकी नगरपालिकाने बहुत हिम्मत दिखाई है । शहरके लोगोंका कर्त्तव्य है कि वे अपने प्रतिनिधियोंका पूरा-पूरा साथ दें । आपने शिक्षाको [ सरकारके] नियन्त्रणसे मुक्त कर लिया, इतना काफी नहीं है । आप पूरी नगरपालिकाको उसके प्रभावसे मुक्त करें। इसमें तो जेल जानेका भी कोई भय नहीं है । इसके लिए तो एकमात्र युक्तिकी, आत्मविश्वासकी और एक-दूसरेके प्रति विश्वासकी जरूरत है । हम अपने पाखाने और अपने रास्ते साफ रखें। जो लोग गरीब हैं हम उनकी सार-सँभाल करें, जो लोग रोगी हैं उनकी सेवा करें, उनके लिए आवश्यक धन इकट्ठा करें और उसके खर्चका सही-सही हिसाब रखें ।

इस कामको करने के लिए सरकारकी अथवा सरकारके कानून-कायदोंकी क्या जरूरत हो सकती है ? दुर्भाग्यसे हमारा आत्मविश्वास चला गया था । हमारी पंचायत अप्रामाणिक हो गई थीं। लोग भी उद्दण्ड हो गये थे । ऐसी स्थितिका लाभ सरकारको मिला। सूरतके लोग स्वेच्छासे तय किया हुआ कर पंचायतको दें और पंचायत उसके खर्चका पूरा हिसाब ईमानदारीसे रखे । वह संचित रुपयेका उपयोग मेरे बताये हुए कामोंमें करे तो वह पंचायत आपकी स्वतन्त्र नगरपालिका होगी। पंचायतका भ्रष्ट