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टिप्पणियाँ

ही जरूरी हो—उग्र, आक्रामक या सरकारको चोट पहुँचानेवाली सविनय अवज्ञा कहलायेगी ।

दूसरी ओर, प्रतिरक्षात्मक सविनय अवज्ञा या ऐसे कानूनोंकी अवज्ञा जो अपने-आपमें बुरे नहीं हैं, परन्तु जिनको मानना आत्मसम्मान या मानवीय प्रतिष्ठाके अनुरूप नहीं होगा, विवश होकर की गई अवज्ञा है। और शान्तिपूर्ण कामोंके लिए स्वयंसेवक दल बनाना, ऐसे ही कामोंके लिए सार्वजनिक सभाएँ करना, सरकारके निषेधादेशोंके बावजूद ऐसे लेख प्रकाशित करना जो हिंसाका प्रतिपादन नहीं करते या हिंसाको नहीं भड़काते, प्रतिरक्षात्मक सविनय अवज्ञा है। और इसी कारण प्रतिकूल निषेधादेशोंके बावजूद इस खयालसे शान्तिमय धरना देना कि लोगोंको उन चीजोंसे या उन संस्थाओं-से जहाँ धरना दिया गया है, विमुख कर दिया जाये, प्रतिरक्षात्मक सविनय अवज्ञा है। ऊपर कही गई शर्तोंको पूरा करना प्रतिरक्षात्मक सविनय अवज्ञाके लिए भी उतना ही जरूरी है जितना कि आक्रामक सविनय अवज्ञाके लिए।

एक उपयुक्त फटकार

कहा जाता है कि तंजौरके श्री पी०वी० हनुमन्तरावने मद्रास सरकारसे क्षमा-याचना की है और अपनी रिहाई चाही है। चूँकि उन्होंने एक असहयोगीकी तरह अपने ऊपर किये गये विश्वासको नहीं निबाहा, सरकारका उनसे जमानत माँगना बिलकुल ठीक ही हुआ है। मद्रास सरकार कहती है कि एक कैदी श्री सुब्रह्मण्य शिवने, जो बीमार थे, रिहाईके लिए अर्जी दी। उन्होंने कुछ समयके लिए राजनीतिमें भाग न लेनेका वायदा भी किया, और अब मुकर गये हैं और इस बातको स्वीकार ही नहीं करते कि उन्होंने कभी क्षमा मांगी थी । श्री सुब्रह्मण्य शिव एक सुविख्यात जनसेवक हैं। मैं आशा करता हूँ कि वे इन सब बातोंका जिक्र करते हुए पूर्ण वक्तव्य देकर अपनी स्थिति साफ करेंगे और यदि उन्होंने दुर्बल क्षणोंमें माफी माँगी है तो मैं आशा करता हूँ कि वे श्री याकूब हसनकी तरह उसे निर्भयतापूर्वक स्वीकार करनेका साहस दिखायेंगे। सभी जानते हैं कि वे एक भयंकर रोगसे पीड़ित हैं और यदि उन्होंने ऐसी परिस्थितिमें क्षमा याचना की है तो निश्चय ही जनता उनकी इस दुर्बलताको नजर-अन्दाज कर देगी। यदि उन्होंने इस आशयका कोई वायदा किया है कि वे एक सालतक राजनीतिमे भाग नहीं लेंगे तो उसे जरूर पूरा करना चाहिए । असहयोगीके मनमें दुर्बलता कैसी ? वह कमजोरीको छिपायेगा भी नहीं। उसके लिए सबसे जरूरी बात तो पूरी तरह ईमानदार होना है और उसे चाहिए कि वह अपने वायदे, चाहे वे दुर्बल क्षणमें ही क्यों न किये गये हों, निष्ठाके साथ पूरे करे; यदि उन वचनोंको पूरा करने में कोई अनैतिकता होती हो तो बात अलग है।

ईसाई समाज

कहा जाता है, ईसाई समाजमें इन दिनों ऐसी चर्चा चल रही है कि मैंने निजी बातचीत में लोगोंसे यह कहा है कि यदि भारत शस्त्रोंके प्रयोगके लिए समर्थ होता तो मैं निश्चय ही उसका सहारा लेता और शस्त्रोंके प्रयोगकी सलाह देता। मैंने ऐसा