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एक ही मामला
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दोहराये जानेकी खबर मिली है और जयरामदास [ दौलतराम ] ने जेलके अपमानजनक तरीके माननेसे इनकार कर दिया है। वे उसे मानकर न तो उस ढंगसे सलाम करेंगे, जिस ढंगसे जेलमें करनेका विधान है और न वे जामातलाशी ही देंगे । इसलिए उन्हें एकान्त कोठरीमें बच्द कर दिया गया है। उन्हें रोशनी और चप्पछसे भी वंचित रखा गया है। कहा जाता है कि यदि बे नहीं झुूकेंगे तो उन्हें और भी सजाएँ दी जायेंगी। शायद उन्हें डंडा-बेड़ी दी जाये और तीनचा दिनतक उसीमें खड़ा रखा जाये। ऐसी सजा पहले हमारे पूर्वज भोग चुके हैँ; सभी काछोंमें और सभी देशोंमें ऐसा होता आया है। में आशा करता हूँ कि जिन कैंदियोंते अधिकारियोंको चुनौती दी है परमात्मा उन्हें शक्ति देगा और वे प्राण गवानेकी नौबत आ जानेपर भी नहीं झुकेंगे ।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, ६-२-१९२२

१५०. एक ही मामला

मेने परमश्रेष्ठ वाइसरायको जो पत्र लिखा था वह गंम्भीर विचार और प्रभुकी प्रार्थना करनेके बाद ही लिखा थ्रा। वह कोई धमकी नहीं है; क्‍योंकि उसका प्रत्येक शब्द कार्यान्वित करनेके इरादेसे लिखा गया है। वह एक हार्दिक प्रथाना है कि क्रर शासक अनुचित कामसे विरत हो जाये। कर शासक लार्ड रीडिंग नहीं है । वे बिना जाने ही जिस शासन्त-प्रगालीके शिकार बतकर छाचार हो चूके हैँ वह प्रणाली ही ऋर है। किन्तु शासन-प्रणाली आखिरकार किसी व्यक्तिके ही रूपमें सामने आती है। आज लार्ड रीडिंग ही उसके साकार स्वरूप हैं; चाहे उन्हें इसकी प्रतीति हो चाहे न हो । मैने बड़ी विनम्नताके साथ निवेदन किया है कि बे स्थितिपर गम्भीरता-पूर्वक विचार करें और अपनें-आपसे पूछें कि क्या सरकारकी ओरसे की जानेबाली मतमानी किसी भी तरह उचित ठहराई जा सकती है। जरा बे साप्ताहिक समीक्षा[१]पर घ्यान दें जिसे वही पुराता शीर्षक “इन कोल्ड ब्लड" दिया गया है। यदि सभी गवाह झूठे नहीं है तो यह पूराका-पूरा बयान सच है। क्‍या ऐसा होना उचित है?

किन्तु सत्ताके आदेशोंकी अवज्ञा हो तो क्‍या किया जाये ? क्‍या सत्ताकी अवहेलना (कमसे-क्रम अहिसापूर्ण अवज्ञा) का मुकाबला नुशंसताके साथ, सत्ताका कुटिक और मनमाना प्रयोग करके किया जाना चाहिए?

यदि वाइसराय इतना सीधा-सादा मामला भी नहीं समझ सकते या वे उसे समझना नहीं चाहते तो क्या भारत हाथपर-हाथ रखे बेंठा रहे ? प्रतिरक्षात्मक सबिनय अवज्ञा तो हर हालतमें जारी रहनी चाहिए। यदि सारा भारत भी एक स्वरसे कहता कि बिना अनुमतिके शान्तिपूर्ण आम सभाएंँ नहीं करनी चाहिए, बिना अनुमतिके शान्तिपूर्ण स्वयंसेवक संघ नहीं बनाया जाना चाहिए और बिना अनुमतिके समाचार-

  1. १ . यंग इंडिया, ६-२-१९२४ में ध्रकाशित पुल्सि और यूरोपीयों दारा किये गये अत्याचाररोंका विवरण।