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गोरखपुरका अपराध

है कि मैंने सरकारकी छोटी-छोटी भूलोंपर तो ध्यान ही नहीं दिया है । परन्तु अब तो सरकारने हद ही कर दी है। उस उत्तरमें सरकारने अपनी कितनी ही भूलोंको गुणके रूपमें दिखाया है । और जिन भूलोंको गुण बताया ही नहीं जा सकता वह उनको अनदेखा कर गई है । सभाबन्दी और जबानबन्दीके जो नोटिस जारी किये गये हैं। उनके विषय में वह लिखती है कि ये नोटिस तो असहयोगियोंकी धूर्तताओंके कारण जारी करने पड़े हैं। यद्यपि सच बात यह है कि सरकारने ऐसा एक भी प्रमाण नहीं दिया जिससे इस प्रतिबन्धकी आवश्यकता सिद्ध हो । तथापि कोई-न-कोई तर्क तो उसके समर्थन में दिया ही जा सकता था; इसलिए सरकारने उस गलत कामको अच्छा कहकर पेश किया। परन्तु लूट-पाटका, मार-पीटका, खादी जलानेका और रातमें कांग्रेस दफ्तरोंपर छापा मारनेका बचाव किस तरह किया जा सकता है ? यदि लोग कानूनके खिलाफ काम करते हैं तो क्या इस कारण सरकारी कर्मचारी भी कानूनके खिलाफ लूटपाट या मारपीट कर सकते हैं ? इसलिए इस बातपर सरकार चुप्पी साध गई है। इसी तरह इस उत्तरमें दूसरी गम्भीर बातोंके विषय में भी अत्युक्ति करने अथवा मौन रखनेकी नीतिका अवलम्बन किया गया है । में उनके विश्लेषणमें पाठकोंका समय लेना नहीं चाहता । उत्तर तो मिलने ही वाला था और मेरा यह भी खयाल था कि उसमें कोई बड़ी बात न होगी; परन्तु उसमें जो बेशर्मी दिखाई देती है में उसके लिए तैयार नहीं था। मैं यह सोचता था कि उसमें नरम दलको कुछ सान्त्वना देनेकी कुछ-नजीकुछ बात जरूर होगी। परन्तु वे सूखे ही टरका दिये गये हैं और असहयोगियोंके लिए तो जो पहले था वह है ही। सरकार हमें अस्पृश्य समझती है इसका समझदार आदमी- के लिए इस उत्तरसे बढ़कर और क्या प्रमाण हो सकता है ?

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, १२-२-१९२२


१६१. गोरखपुरका अपराध

गोरखपुर जिला शायद सबसे बड़ा जिला है । उसमें प्रखर स्वभाव के लोग रहते हैं। अखबारोंमें जो ख़बरें छपी हैं उनसे मालूम होता है कि उन्होंने अपने स्वभावकी प्रखरताका उपयोग विपरीत दिशा में किया है। उन्होंने पुलिसका एक थाना जला दिया,[१] उन्होंने इक्कीस निर्दोष सिपाहियोंको मार डाला और उनकी लाशें जला दीं । इन मरे हुए लोगों में वहाँके थानेदारका एक जवान लड़का भी है। अखबारोंमें जो विवरण छपा है उनके अनुसार ये लोग एक जगह लगी हुई पैठ या हाटको रोकने के लिए गये थे। पहले थोड़े-से लोग गये थे, किन्तु उनको वहाँसे भगा दिया गया । इसलिए बादमें एक बड़ा दल गया। इस दल में स्वयंसेवक भी थे ।

 
  1. ४ फरवरी, १९२२ को ।