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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मेरे लिए और प्रत्येक समझदार असहयोगी के लिए यह घटना नीचा दिखाने वाली है । वहाँ से जो दूसरी खबरें आई हैं उनसे भी हमारे अहिंसक रहनेके सम्बन्धमें शंका होती है ।

बारडोली में आन्दोलनका जो श्रीगणेश किया जानेवाला है उसके लिए यह घटना एक अपशकुन है । शान्तिका और अशान्तिका प्रयोग साथ-साथ नहीं हो सकता । यदि लोगों को अशान्तिका प्रयोग करना हो तो शान्तिका प्रयोग करनेवाले लोगोंको अलग मार्ग ग्रहण करना होगा। जो लोग शान्तिके पुजारी हैं उन्हें अशान्तिको माननेवाली सरकार और जनता दोनोंसे ही असहयोग करना होगा ।

यदि गोरखपुर जिलेके इन लोगोंका सम्बन्ध असहयोगकी लड़ाईसे नहीं है तो हमें यह स्वीकार करना होगा कि वहाँ असहयोगियोंका प्रभाव जितना अपेक्षित था उससे बहुत कम हुआ है। प्रत्येक शुभ कार्य में ऐसे विघ्न तो आ ही जाते हैं। जब अपने लोग मरते हैं तब मेरा हृदय दुःखित नहीं होता अथवा होता भी है तो मैं उसे अपने वशमें रख सकता हूँ । किन्तु जब एक भी सहयोगीका खून किया जाता है तब मुझे शर्म मालूम होती है और आन्दोलनकी प्रगतिके सम्बन्धमें भय पैदा होता है । शान्तिमें विश्वास रखनेवाले प्रत्येक मनुष्यकी स्थिति ऐसी ही होनी चाहिए।

यह लेख मैं बम्बई जाते समय लिख रहा हूँ ।[१] भारतभूषण पण्डित मदनमोहन मालवीयने मुझे वहाँ बुलाया है। कांग्रेस कार्य समितिकी बैठक बारडोलीमें बुलाई गई है और वह शनिवारको[२] होगी। यह लेख पाठकोंके हाथोंमें रविवारको पहुँचेगा । मैं स्वयं सामूहिक सविनय अवज्ञाको मुल्तवी करनेकी जिम्मेदारी अपने ऊपर लेना नहीं चाहता; इसलिए मैं इस सम्बन्धमें कार्य समिति से सलाह करना चाहता हूँ ।

मेरा धर्म अडिग है। उसकी कसौटी ऐसे समयमें ही हो सकती है । मैं जबतक अहिंसाकी भावना में वृद्धि होते देखता हूँ तबतक तो अनेक जोखिमें उठाने के लिए तैयार हूँ । किन्तु जब मैं यह देखता हूँ कि कोई दूसरा मेरी प्रवृत्तिका अनुचित उपयोग कर रहा है तब मैं एक पग भी आगे नहीं उठा सकता ।

मैं गोरखपुर से और ज्यादा खबर मिलनेकी राह देख रहा हूँ । मैं अपने विचार पाठकों के सम्मुख इसलिए रखता हूँ कि मैं इस सम्बन्धमें प्रत्येक पाठककी सहायता लेना चाहता हूँ । यह लड़ाई नये ढंगकी है। जो लोग शान्तिमय उपायोंमें विश्वास करते हैं उन्हें आत्म-निरीक्षण करना चाहिए । उनको केवल शान्तिका, अहिंसाका ही प्रसार करना होगा। यह लड़ाई वर बढ़ाने की नहीं, बल्कि वैरको मिटाने की है; लोगों में भेदभाव बढ़ाने की नहीं, बल्कि उनको एकत्र करने की है । यह लड़ाई ऐसी नहीं है जिसमें मिश्रित साधन काममें लाये जा सकें, बल्कि ऐसी है जिसमें हमें विवेकसे काम लेकर उचित और अनुचितका भेद जानना है और उनको अलग-अलग करना है ।

गोरखपुर जिलेके लोगों के पापके लिए मैं सबसे अधिक उत्तरदायी हूँ । किन्तु इसके लिए प्रत्येक शुद्ध असहयोगी भी उत्तरदायी है । उसका दुःख हम सबको होना चाहिए।

  1. ८ फरवरी, १९२२ को; देखिए “पत्रः डा० एम० एस० केलकरको”, ८-२-१९२२ ।
  2. ११ फरवरी, १९२२ को ।