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भट : 'बॉम्बे क्रॉनिकल' के प्रतिनिधिसे


घरेलू मामलों में उसका व्यवहार करते हैं, वैसे ही राष्ट्रके हित में करें। निश्चय ही अग्नि-परीक्षा और कष्टोंसे गुजरे बिना स्वराज्य प्राप्त नहीं होगा और मुझे रोज जो खबरें मिलती हैं कि लोग अवर्णनीय कष्टोंको राष्ट्रके लिए बिना बदला लिये सह रहे हैं, उन्हें पढ़कर मेरे मनको खुशी होती है ।

इसलिए इस मुद्दे पर मेरे मनमें कोई गलतफहमी नहीं है । मैं किसी असम्भव वस्तुको प्राप्त करने की कोशिश नहीं कर रहा हूँ । हिंसा हमेशा रहेगी और हिंसाकी एकाध घटनासे मुझे परेशान होनेकी जरूरत नहीं है । मैंने सविनय अवज्ञा बन्द करने की सलाह इसलिए दी है कि गोरखपुरके पड़ोसमें की गई हिंसा वैयक्तिक नहीं थी, किसी व्यक्तिगत अन्यायके सम्बन्ध में भी नहीं थी बल्कि राजनीतिक अन्यायके धुंधले ज्ञानके कारण थी। चौरीचौराके जैसा अवसर, जिसके फलस्वरूप सार्वजनिक हिंसा की गई, आनेपर लोगों में फिर भी आत्मसंयम बना रहे ऐसी आशा मैं कभी नहीं छोड़ सकता। इससे कहीं ज्यादा उत्तेजनामें भी जैसे कि जब सार्वजनिक सभाएँ बलपूर्वक भंग की गईं, भारतमें लोग लगभग सभी जगह वर्ष भर शान्त रहे हैं । जनता में पागलपन भड़क उठने के ये सभी अवसर थे परन्तु लोगोंने अनुकरणीय संयम बनाये रखा। मेरा विश्वास है कि धीरे-धीरे परन्तु निश्चित रूपसे अहिंसा की भावना फैल रही है । मुझपर की गई प्रश्नोंकी बौछारसे संकेत मिलता है कि यह बहुत कठिन काम है, परन्तु वास्तव में यह कठिन या अव्यावहारिक है नहीं । यदि कांग्रेस और खिलाफत संगठन बिलकुल ठीक तरहसे संगठित होते तो चौरीचौरा जैसी घटना हो ही नहीं सकती थी । यह तो मात्र कांग्रेस संगठनको ठीक बनाने का सवाल है । और यह तो राजनीति- शास्त्रका प्रारम्भिक पाठ है कि जबतक आपका संगठन काफी अच्छा नहीं है तबतक आप कुछ नहीं कर सकते । सरकार इसलिए सफल हो जाती है कि वह संगठित हिंसा कर सकती है । कांग्रेस भी तभी सफल होगी जब इसका संगठन जो अहिंसापर आधारित है, पूरी तरह सुव्यवस्थित हो जायेगा । कार्य समितिने रचनात्मक कार्यक्रमकी जो रूपरेखा तैयार की है वह इसी दिशामें एक प्रयत्न है । यह भी याद रखना चाहिए कि चूंकि अहिंसा को अपनाना मनुष्य के लिए स्वाभाविक है, इसलिए हिंसाकी अपेक्षा उसे बहुत कम समय में संगठित किया जा सकता है। जरा सोचिए कि १८ महीनोंमें भारतने अहिंसाके रास्ते में कितनी प्रगति की है - और उस लम्बे समयका खयाल कीजिए जो भारतको अस्त्रोंका प्रयोग सिखाने में लग जायेगा ।

क्या आपको ऐसी कोई आशंका नहीं कि कांग्रेस मशीनरी ढीली हो जायेगी और बार-बार होनेवाली निराशाओंके कारण उत्साहमें कमी आ जायेगी ?

मुझे ऐसी कोई आशंका नहीं है। इसका कारण केवल यही है कि सच्चे कार्य- कर्त्ताओं को समझना चाहिए, जैसा कि वे समझ भी गये हैं, कि सभी सजीव संस्थाओं के विकास में वातावरण में होनेवाले लगातार परिवर्तनोंको स्वीकार कर लेने और उन्हें सहन करनेकी क्षमता होनी ही चाहिए ।

महात्माजी ! क्या आपको ऐसी कोई आशंका नहीं है कि [ सविनय अवज्ञाको ] मुल्तवी करनेके कारण लोग आपके अहिंसा के सिद्धान्तमें विश्वास खो बैठेंगे ?