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चौरीचौराका हत्याकाण्ड

मैं अपने सहयोगियोंसे आग्रह करता हूँ कि वे मेरा अनुकरण न करें। उनके मामलेमें उपवासका कोई कारण नहीं होगा। वे सविनय अवज्ञाके प्रवर्त्तक नहीं हैं । मैं उस शल्यचिकित्सक (सर्जन) की अवांछनीय स्थितिमें हूँ जो निश्चित रूपसे खतरनाक चीर-फाड़के लिए अनाड़ी साबित हुआ हो। मुझे या तो इसे छोड़ देना होगा या अधिक दक्षता प्राप्त करनी होगी। जहाँ व्यक्तिगत प्रायश्चित्त मेरे लिए न केवल आवश्यक, बल्कि अनिवार्य भी है, वहाँ कार्य समिति द्वारा निर्धारित अनुकरणीय आत्म- संयम धारण करना ही अन्य सभी लोगोंके लिए निश्चित रूपसे काफी प्रायश्चित्त है । यह कोई छोटा प्रायश्चित्त नहीं है। यदि इसे सच्चे हृदयसे किया जाये तो यह उपवाससे कई गुना सच्चा और उपयोगी सिद्ध हो सकता है । मन, कर्म और वचनसे अहिंसाकी प्रतिज्ञाको अधिकाधिक पूरा करने या उस भावनाका व्यापक रूपसे प्रसार करनेसे अधिक मूल्यवान् तथा अधिक फलदायक और क्या हो सकता है ? यदि मेरे सभी सहयोगी इस सप्ताह व्यर्थ वाद-विवाद न कर चुपचाप कार्य समिति द्वारा तैयार किये गये रचनात्मक कार्यक्रमको पूरा करने, जिनके बारेमें स्वराज्य-प्राप्तिके लिए कांग्रेसके सत्य और अहिंसा के सिद्धान्तको समझनेका भरोसा हो ऐसे लोगोंके नाम कांग्रेसकी सदस्य- सूची में दर्ज करने, प्रतिदिन धर्म समझकर निर्धारित समयतक चरखा चलाने, समृद्धि और स्वतन्त्रताके प्रतीकरूप चरखेका प्रत्येक घरमें प्रचार करने, अछूतोंके अभावोंके बारेमें जानने के लिए उनके घरोंमें जाने, राष्ट्रीय पाठशालाओंमें अछूत बच्चे दाखिल करने के लिए प्रोत्साहित करने, हर वर्ग के स्त्री-पुरुषोंके लिए सामान्य मंत्र ढूंढ़नेके विशेष उद्देश्यसे सामाजिक संगठन करने, मद्यके अभिशापसे बरबाद घरोंमें जाने तथा राष्ट्रीय पाठशालाओं तथा वास्तविक पंचायतोंको समुचित आधारपर स्थापित करनेमें व्यस्त रहें तो यह देखकर मुझे भोजनसे भी अधिक तृप्ति उपलब्ध होगी। कार्यकर्ता उपवास करनेकी अपेक्षा इन गति-विधियोंमें अपनेको व्यस्त रखें तो ज्यादा अच्छा होगा । इसलिए मैं आशा करता हूँ कि कोई भी व्यक्ति झूठी हमदर्दी दिखाने के लिए अथवा उपवासके आध्यात्मिक मूल्यकी गलत धारणावश उपवास करनेमें मेरा अनुकरण नहीं करेगा ।

जहाँतक हो सके सभी तरह के उपवास तथा प्रायश्चित्त गुप्त ही रहने चाहिए । किन्तु मेरा उपवास प्रायश्चित्त और दण्ड दोनों ही है, और दण्ड तो सार्वजनिक रूपसे ही दिया जाता है । यह मेरे लिए तो प्रायश्चित्त है और उन लोगोंके लिए, जिनकी मैं सेवा करने की कोशिश करता हूँ तथा जिनके लिए मैं जीना और मरना भी पसन्द करता हूँ, एक दण्ड है । उन्होंने कांग्रेसके कानूनके विरुद्ध अनिच्छापूर्वक पाप किया है; यद्यपि वे केवल हमदर्दी दिखाने वाले थे, कांग्रेससे उनका कोई वास्तविक सम्बन्ध नहीं था । शायद उन्होंने पुलिस के सिपाहियोंको -अपने देशवासियों तथा साथी मानवोंको—मेरा नाम लेकर ही बोटी-बोटी काटकर मारा है। अपने प्रियजनोंको प्रेमपूर्वक दण्ड देनेका एकमात्र उपाय स्वयं कष्ट सहन करना है । मैं यह भी नहीं चाहता कि वे गिरफ्तार किये जायें। यह मैं चाह भी नहीं सकता । किन्तु मैं उन्हें यह बताना चाहूँगा कि उनके कांग्रेस-सिद्धान्तको भंग करनेके कारण मुझे कष्ट उठाना होगा। जो लोग अपनेको दोषी अनुभव करते हैं और अब पश्चात्ताप कर रहे हैं, उन्हें मेरी सलाह है