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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उनके साथ सहानुभूति दिखाने के लिए नहीं, वरन् केवल अनुकूल वातावरण तैयार करने और सरकारकी तरफसे पश्चात्ताप व्यक्त करानेके लिए ही ऐसा करना उचित है...

उन्होंने निःसन्देह सरकारका उल्लेख करते हुए यह सम्मति भी प्रकट की कि "हम चाहे जितना आगे बढ़ें, आप फौजी कानूनकी घोषणा कदापि नहीं कर सकते"। श्री गांधी के अनुयायी, यहाँतक कि जिन्होंने कुछ बातोंमें उनका हलका विरोध भी किया था वे भी, उनके रुखका समर्थन करते हैं ।...

श्री गांधी कोई बातचीत या समझौता अपनी ही शर्तोंपर करना चाहते हैं, अन्यथा नहीं। और वे शर्तें मानने योग्य कदापि नहीं हैं ।

पंजाब के सम्बन्धमें उन्होंने इस तथ्यपर जोर दिया कि कांग्रेस-दल कांग्रेस उप-समितिकी रिपोर्टमें प्रस्तुत प्रस्तावोंपर अमल करनेसे ही सन्तुष्ट होगा, अन्य किसी बातसे नहीं। इसमें न केवल छोटे अधिकारियोंको सजा देनेकी बात है, वरन् सर माइकेल ओ'डायर और डायर आदिकी पेंशनें बन्द करनेकी लगभग अमान्य शर्तें भी आती हैं।

खिलाफतके मसलेके सम्बन्धमें श्री गांधीने कहा कि फ्रांसीसियोंको सीरिया से अवश्य चले जाना चाहिए। यह निःसन्देह सर्वथा अमान्य शर्त है । वे चाहते हैं कि इंग्लैंड मिस्रसे चला जाये । इसपर भी कोई टिप्पणी करनेकी जरूरत नहीं है ।

जहाँतक स्वराज्यका सम्बन्ध है वे चाहते हैं कि केन्द्रीय और प्रान्तीय सरकारोंको तुरन्त पूरा औपनिवेशिक दर्जा दे दिया जाये । दर्जा और उसकी रूपरेखा जनताके विधिवत् चुने हुए प्रतिनिधि तय करेंगे। प्रतिनिधियोंके चुनाव के लिए मतदान आदिके सम्बन्धमें कांग्रेस संविधान स्वीकार किया जाये ।

उन्होंने यह बात बार-बार जोर देकर कही कि ये माँगें कमसे कम हैं और इन्हें सरकार तथा गोलमेज सम्मेलनको स्वीकार करना ही चाहिए।...

सम्मेलनसे पूर्व ये शर्तें रखी गई हैं कि कुछ सजायाफ्ता लोगोंको जैसे कि स्वयं- सेवकोंको रिहा कर दिया जाये और अन्य लोगोंके मामलोंपर विचार करनेके लिए एक जाँच -अदालत नियुक्त की जाये । यद्यपि जाँच - अदालत के सभी न्यायाधीश सरकार द्वारा नियुक्त नहीं किये जायेंगे, पर अगर सरकार इस सुझावको स्वीकार करनेके लिए तैयार हो तो मुझे भी मामलोंपर पुनर्विचारके लिए एक जाँच-अदालतकी नियुक्तिमें कोई आपत्ति नहीं है । यह बात अली-भाइयों और उनकी जैसी स्थिति के अन्य लोगोंपर लागू नहीं होती; पर इन कैदियों ( फतवा कैदियों) की रिहाईकी अनिवार्यमाँग सम्मेलनकी अनिवार्य, प्रारम्भिक शर्त के रूपमें ही की गई है।

किन्तु मेरी राय तो यह है कि कुछ खास कैदियोंकी रिहाईकी माँगको अपने सम्मेलनमें शामिल होने की शर्तकी तरह पेश करनेकी बात, यदि हमें सचमुच सम्मेलनकी दरकार है, छोड़ देनी चाहिए। मैं मानता हूँ कि जबतक किसी तरह की हिंसाका अन्देशा न हो, सरकारको श्री गांधीके आन्दोलनमें दखल नहीं देना चाहिए ।...

सर्वश्री मुहम्मद अली और शौकत अली तथा उसी कोटिके अन्य कैदियोंके सम्बन्धमें सरकार और भी अधिक दृढ़ है । श्री गांधी और हममें से अनेक यह जानते