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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लिया जाना चाहिए कि किसी हलके ढंगके राजद्रोहके लिए भड़काना कानूनके विरुद्ध अपराध नहीं है । भारत सरकार यह स्पष्ट कर देना चाहती है कि वह राज्य के विरुद्ध किये गये अपराधोंके सम्बन्धमें जब-जब ठीक समझेगी उन लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करेगी जो कानूनको तोड़ेंगे। "

अब भारत सरकारको इस आरोपका उत्तर देना बच रहता है कि यद्यपि बम्बई सम्मेलनमें रखी गई वे शर्तें जो वाइसराय महोदयके कलकत्तेके भाषणमें जरूरी बताई गई थीं कांग्रेसकी कार्यकारिणी समितिने स्वीकार कर ली थीं, फिर भी परमश्रेष्ठने सम्मेलन बुलाने के प्रस्तावको एकदम ठुकरा दिया। यह बात वास्तविकतासे कितनी दूर है यह तो परमश्रेष्ठके भाषण तथा उस सम्मेलनमें प्रस्तावित शर्तोंकी तुलना करनेपर स्पष्ट हो जायेगा । परमश्रेष्ठने अपने उस भाषणमें इस बातपर बड़ा जोर दिया था कि सम्मेलनमें किसी प्रश्नपर विचार करनेसे पहले यह अत्यावश्यक है कि असहयोगी दल अपने अवैध कार्योंको बन्द कर दे। परन्तु सम्मेलनके प्रस्तावोंमें इस मुद्दे पर कोई आश्वासन नहीं दिया गया है। इसके विपरीत सरकारसे ऐसी रियायतें मांगी गई हैं जिनमें दण्ड विधान संशोधन कानून और राजद्रोहात्मक सभा कानूनके अन्तर्गत जारी की गई विज्ञप्तियोंकी वापसी और उनके अन्तर्गत दण्डित लोगोंकी रिहाई ही नहीं शामिल है; बल्कि उन अपराधियों की रिहाई भी आती है जिन्हें सैनिकोंको राजभक्ति से डिगाने की कोशिश करनेके अपराधमें सजाएँ दी गई हैं। इसके अतिरिक्त उनमें देश के सामान्य कानूनके अन्तर्गत सजा पाये हुए लोगोंके मामले पंचोंकी समितिके सुपुर्द करनेकी माँग भी की गई है । परन्तु उनमें ऐसी कोई बात नहीं कही गई है कि हड़ताल, धरना और सत्याग्रहको छोड़कर असहयोगियोंकी अन्य गैर-कानूनी कार्रवाइयाँ बन्द कर दी जायेंगी। इसके अतिरिक्त उस सम्मेलनमें श्री गांधीने जो कुछ कहा उससे प्रकट होता है कि वे निषिद्ध संस्थाओंमें स्वयंसेवकोंकी भरती और सत्याग्रहकी तैयारियाँ जारी रखना चाहते हैं । तिसपर श्री गांधीने यह भी बिलकुल स्पष्ट कर दिया है कि प्रस्तावित गोलमेज सम्मेलन केवल उनके आदेशोंको लेखबद्ध करने के लिए ही बुलाया जायेगा । इसलिए यह कहना व्यर्थ है कि इस प्रकारकी शर्तोंसे परमश्रेष्ठकी बताई हुई मुख्य शर्तें पूरी होती हैं । उचित रूपसे यह भी नहीं कहा जा सकता कि वे परमश्रेष्ठकी भावनाओंको ध्यान में रखकर प्रस्तुत की गई हैं।

अन्तमें, भारत सरकार श्री गांधीके इस घोषणापत्र के अन्तिम अनुच्छेद में दी हुई माँगोंकी ओर ध्यान आकृष्ट करना चाहती है। ये माँगें कांग्रेस कार्यकारिणी समितिकी माँगोंसे भी अधिक हैं। उनकी माँगोंका रूप अब यह है : (१) अहिंसात्मक गतिविधियों- के सम्बन्ध में दण्डित या विचाराधीन सभी कैदियोंकी रिहाई और (२) इस बातकी गारंटी कि सरकार असहयोगी दलके अहिंसात्मक कार्योंमें बाधा न डालेगी, भले ही वे भारतीय दण्ड संहिताके अन्तर्गत क्यों न आयें — या दूसरे शब्दोंमें कहें तो सरकार इस बातका वादा करे कि वह अनिश्चित कालतक असहयोग के विरुद्ध देशके सामान्य और पुराने कानूनोंको कार्यान्वित नहीं करेगी। इन रियायतोंके बदले में श्री गांधीका प्रस्ताव है कि वे असहयोगी दलके विद्रोहात्मक, अवैध प्रचार तथा अन्य कार्योंको जारी रखना चाहते हैं और बदले में देना केवल इतना ही चाहते हैं कि जबतक जेलोंमें बन्द अपराधी