पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/११४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

स्वराज्यके शिल्पी

अब हमें सावधान हो जाना चाहिए। अब हमें शिल्पी बननेका प्रयत्न करना चाहिए। यदि हम निर्माण-कार्य-सम्बन्धी विभागको गौरवान्वित नहीं कर सकते तो हमें सविनय अवज्ञा करनेका अधिकार ही नहीं है।

शान्तिके सम्बन्धमें लापरवाही

मैंने निराशाका दूसरा कारण शान्तिके सम्बन्धमें लापरवाही बताया है। यह तो स्वराज्य के सम्बन्धमें गलतफहमी होनेसे भी अधिक भयंकर है क्योंकि पहले कारणमें तो निदान न जानने का ही दोष आता है और वैद्यको निदानके सम्बन्धमें शंका हो तो वह हलकी दवा देता जाता है; लेकिन दूसरे कारणमें तो वह दवा तय करनेमें लापरवाही करता है। एक वैद्यने मेरे एक मित्रको मेग्नेशियम सल्फेटकी जगह जस्तेका फूला (सफेदा) दे दिया। उसे दस्तोंके बजाय के शुरू हो गई और वह अत्यन्त प्रयत्नपूर्वक उचित उपचार करने तथा असह्य कष्ट भोगने के बाद ही बचाया जा सका। पिसा हुआ संखिया और चीनी दोनों देखने में एक समान जान पड़ते हैं। चीनीके बदले संखिया खानेवाले रोगीका क्या हाल होगा? एक मित्रने नमकको चीनी समझकर अपनी चायमें तीन चम्मच डाले। बादमें जब उन्होंने प्यालेको मुँहसे लगाया तब उनकी आकृति किसी हास्य-पत्रिकामें भेजे जाने योग्य थी।

उपर्युक्त उदाहरण मैंने अज्ञानी और अनुभवहीन वैद्योंके दिये हैं। लेकिन जो वैद्य जान-बूझकर इस बातकी परवाह नहीं करता कि वह संखियेकी भस्म दे रहा है अथवा चीनी का चूर्ण, उसके बारेमें क्या कहा जाये? जो लोग यह मानते हैं कि शान्ति से स्वराज्य नहीं मिलता उनकी बात समझी जा सकती है; लेकिन जो मनुष्य, शान्तिका प्रयोग चला रहा हो उसी समय अशान्तिका प्रयोग करनेकी हदतक, लापरवाह बन जाता है, वह असह्य है। ऐसा लापरवाह् मनुष्य न तो स्वराज्य के बारेमें कुछ जानता है और न उसके साधनों के बारेमें। उसे तो साधन बन्धनरूप ही जान पड़ते हैं। मेरी मान्यता है कि बारडोलीमें सविनय अवज्ञाको स्थगित रखकर हम भयंकर आपत्तिसे बच गये हैं। यदि हमें विश्वास हो कि हम हिन्दुस्तानकी जनतापर कुल मिलाकर शान्तिका कोई प्रभाव नहीं डाल सकते और हिन्दुस्तान के उपद्रवी तत्त्व भी हमारी विनयके वशमें नहीं होंगे तो हमारे लिए समझदारी इसीमें होगी कि हम शान्तिसे स्वराज्य प्राप्त करनेकी बात ही भूल जायें। यदि हम इनपर शान्तिसे काबू न पा सकें तो हमें समझ जाना चाहिए कि हम इस सरकारको शान्तिसे कभी नहीं जीत सकते। यदि वे हमारे प्रेमके वश नहीं होते तो वे अवश्यमेव सरकारकी बन्दूकके वश हो कर उसकी मदद करेंगे अथवा वे स्वयं ही शासक बन जायेंगे। हमारे लिए ये दोनों ही स्थितियाँ त्याज्य हैं।

मैं तो मानता हूँ कि उपद्रवी वर्गोंपर काबू पाना मुश्किल भले हो, परन्तु असम्भव नहीं है। हमें अपने ऊपर श्रद्धा होनी चाहिए। हममें धैर्य होना चाहिए। हममें धार्मिक वृत्ति होनी चाहिए।