पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/११३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७९
टिप्पणियाँ

बन गये? अथवा क्या माँ-बापने मेरी बातसे भ्रान्त होकर अपने बच्चोंको स्कलोंसे निकाला था? यदि ऐसा कहें तो मैं क्षमा माँगता हूँ और उन माँ-बापोंको अवश्य ही यह सलाह देता हूँ कि वे अपने बच्चोंको सरकारी स्कूलोंमें भेजें। मेरे लिए और जो असहयोग के तत्त्वको समझ गये हैं उनके लिए तो एक वर्ष लगे अथवा कई वर्ष लगें, जबतक सरकार पश्चात्ताप करके लोकमतका अनुसरण नहीं करती तबतक भले ही सरकारी स्कूलोंमें सोनेकी मुहरें बँटती हों, वे त्याज्य ही हैं।

द्राविड़ी प्राणायाम

कुछ लोग कहते हैं कि स्कूलोंके लिए विद्यापीठको पैसा देना चाहिए। यदि पैसा देनेका काम विद्यापीठका है तो विद्यापीठ कहाँसे पैसा लायेगा? विद्यापीठ बाहरसे पैसा लाकर तो गुजरातके बच्चोंको नहीं पढ़ायेगा? हम उसे पैसा दें और उससे फिर वापस लें, इसकी अपेक्षा हम स्वयं ही प्रत्येक गाँवसे स्कूल चलाने योग्य पैसा इकट्ठा करके शुद्ध ग्रामीण स्कूल क्यों न चलायें?

यह सहाराका मरुस्थल

मैं तो अवश्य मानता हूँ कि हमारे रास्तेमें यह जो सहाराका मरुस्थल आ पड़ा है, सो ठीक ही हुआ है। हम तपेंगे और तपकर मजबूत बनेंगे। अब हमें अच्छे और बुरेकी पहचान हो जायेगी। अब हम जान जायेंगे कि कौन शूरवीर है और कौन कायर है; यह भी कि इस युद्धमें कौन भली-भाँति सोच-समझकर शामिल हुए है और कौन बिना सोचे-समझे? कौन पात्र है और कौन दर्शक? इस बातकी निःसन्देह हमें आवश्यकता थी।

स्कूल हमारी बहुत बड़ी कसौटी है। जहाँ राष्ट्रीय स्कूल चलते हैं वहाँके लोगोंको उन्हें अपने ही बलपर चलानेकी प्रतिज्ञाका पालन करना उचित है। स्कूलके लिए मकान न मिलें तो वे पेड़ोंके नीचे स्कूल लगायें, अध्यापकोंको वेतन न मिले तो वे अनाजकी भिक्षा माँगें, तपश्चर्या करें और बच्चोंको पढ़ायें। राष्ट्रकी उन्नति इसी तरह होगी।

स्वराज्य धाँधलीसे न मिलेगा

कानूनकी कोरी अवहेलना तो अविनय और धाँधली है। अगर स्वराज्य धांधलीसे मिला तो क्या ऐसे लोग ही राज्य चलायेंगे? हमारी मान्यता तो यह है कि हम स्वराज्य प्राप्त करेंगे और उसका उपभोग करेंगे। स्वराज्य के कारीगरकी परीक्षा उसकी ध्वंसात्मक कलासे नहीं बल्कि उसके निर्माणके कौशलसे होगी। जो निर्माण करना जानता है उसे ध्वंस करना तो आता ही है। लेकिन प्रत्येक ध्वंस करनेवाला मनुष्य निर्माता नहीं होता। विध्वंसक मजदूर कहा जाता है जब कि निर्माता शिल्पी। हम बारडोलीमें[१] निर्माण करना सीखनेसे पहले ही ध्वंसात्मक काम शुरू करनेवाले थे, इसलिए कृपालु ईश्वरने हमारा हाथ पकड़ लिया और हमें खतरेसे बचा लिया।

  1. गांधीजीके प्रस्तावपर २९ जनवरी, १९२२ को बारडोली ताल्लुका सम्मेलन में सविनय अवज्ञा करनेका प्रस्ताव स्वीकार किया गया था, उन्होंने इसकी सूचना १ फरवरीको वायसरायको भी दे दी थी; किन्तु बादमें चौरीचौराकी घटनासे गांधीजीने उसको स्थगित रखनेका निर्णय किया।