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पत्र : डा॰ भगवानदासको

पत्रके जरिये मोपलाओंतक और जिस हिन्दू वर्गतक पहुँचना चाहते हो उनतक कैसे पहुँचा जाये, यह तो मैं नहीं बतला सकता; मैं इतना ही जानता हूँ कि हिन्दुओंको कायरता और मोपलाओंको क्रूरता छोड़ देनी चाहिए। दूसरे शब्दोंमें, प्रत्येक पक्षको सच्चे अर्थ में धार्मिक बन जाना चाहिए। शास्त्रोंके अनुसार हिन्दूधर्म निश्चय ही कायरों का धर्म नहीं है। उसी तरह इस्लाम निश्चय ही क्रूरोंका धर्म नहीं है। आपके सामने जो जटिल समस्या है, वह केवल इसी ढंगसे सुलझाई जा सकती है कि कुछ चुने हुए हिन्दू और मुसलमान अपने उद्देश्यमें पूर्ण विश्वास रखते हुए बिलकुल एकताकी भावना से काम करते जायें। प्रारम्भिक अवस्थामें परिणाम न निकलते देखकर उन्हें हताश नहीं हो जाना चाहिए। यदि तुम अपने पाठकोंमें से मुट्ठी भर भी ऐसे स्त्री-पुरुष आगे ला सके, तो तुम्हारा पत्र एक महान् उद्देश्यकी पूर्ति कर देगा।

हृदयसे तुम्हारा,

श्रीयुत एन॰ गोपाल मेनन

सम्पादक, 'नवीन केरलम्'
६, वेल्लाल स्ट्रीट, वेपरी

मद्रास
[अंग्रेजीसे]
सेवन मन्थ्स विद महात्मा गांधी
 

३३. पत्र : डा॰ भगवानदासको

सत्याग्रहाश्रम
साबरमती
१० मार्च, १९२२

प्रिय बाबू भगवानदास,[१]
आपका विशाखापट्टनमसे भेजा हुआ पत्र पाकर हर्ष हुआ।
आपके भाईकी खबरसे अफसोस हुआ।

कहा जाता है कि में जल्दी गिरफ्तार होनेवाला हूँ। मैं यह पत्र रातमें लिखवा रहा हूँ। किन्तु मैं वादा करता हूँ कि यदि पकड़ा नहीं गया तो आपकी पुस्तिकाके[२] बारेमें लिखूंगा। कोई ऐसा सप्ताह नहीं गुजरा जिसमें उसका खयाल न आया हो। लेकिन आप यह तो देखेंगे ही कि 'यंग इंडिया' का आकार दूना कर देनेके बाद भी उसमें एक भी पंक्ति ऐसी नहीं दी गई है जो उसी अंकमें जानी जरूरी न रही हो। ऐसी बातें जिनपर तुरन्त ध्यान देना जरूरी होता है, आजकल इतनी अधिक हो रही हैं

  1. १८६९-१९५६; लेखक, दार्शनिक; एनी बेसेंटके सहयोगी और काशी विद्यापीठ, बनारसके आचार्य।
  2. यह पुस्तिका स्वराज्यको परिभाषा और उसकी विषय-वस्तुके बारेमें थी।