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सन्देश : आश्रमवासियोंको

सुधारने के लिए मैं केवल दो शब्द कहना चाहूँगा। यदि मेरे किसी लेख आदिसे आप इस निष्कर्षपर पहुँचे हैं कि मेरे इस दृष्टिकोणमें कि देशकी आजादीके लिए जेल जाना बहुत कारगर उपाय है, किसी भी तरहका कोई परिवर्तन हो गया है तो मुझे दुःख होगा।

अभीतक मेरा यह विश्वास कायम है कि आत्मत्यागकी. छोटे-बड़े सभी सरकारी कर्मचारियोंपर अनुकूल प्रतिक्रिया हुए बिना नहीं रहेगी। बात यह है कि जेल जानेवालों में सभी तो जैसे चाहिए वैसे नहीं थे। जिनके मनमें हिंसा भरी हुई हो उनकी गिरफ्तारीसे अनुकूल प्रतिक्रियाकी मैं कदापि आशा नहीं रखता। और सविनय अवज्ञाको फिलहाल मुल्तवी करने के पीछे भी मेरा हेतु यही देखना है कि अहिंसाका वास्तविक वातावरण तैयार कर सकना सम्भव है भी या नहीं। इस तरह मैंने आज जो विचार स्थिर किया है वह इसलिए नहीं किया कि प्रशासकोंमें अधिक सख्ती दीख पड़ी है बल्कि उसका कारण यह दुःखजनक बात है कि लोगोंमें जितनी अहिंसाकी मैने आशा कर रखी थी, मैं आज उससे बहुत कम पाता हूँ।[१]

हृदयसे आपका,

श्रीयुत मु॰ रा॰ जयकर
३९९, ठाकुरद्वार
बम्बई

सेवन मन्स विद महात्मा गांधी
 

३५. सन्देश : आश्रमवासियोंको

अहमदाबाद
१० मार्च, १९२२

उन्होंने[२] विदा लेते हुए आश्रमवासियोंसे कहा कि जिनमें देशभक्ति है और जिन्हें भारतसे प्यार है, उन सबको सारे भारतमें और सभी समुदायोंमें शान्ति और सद्भावनाका प्रचार करने में ही अपनी पूरी शक्ति लगानी चाहिए।
[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, १३–३–१९२२
  1. जयकरने इसका जवाब १७ मार्चको दिया था। बीमारीके कारण अगले दिन अर्थात् मुकदमेकी सुनवाईके दिन वे आशाके अनुसार गांधीजो से भेंट नहीं कर सके।
  2. गांधीजीने।