पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/१३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लगाने के खिलाफ सबसे अकाट्य दलील तो यह है कि देशमें आज असहिष्णुताकी भावना इतनी फैल गई है जितनी पहले कभी नहीं फैली थी। असहिष्णुता हिंसाका ही एक रूप है। सहयोगी भाई हमसे अलग हो गये हैं। वे हमसे डरते हैं और कहते हैं कि हम तो वर्त्तमान नौकरशाही से भी बदतर नौकरशाही [के लिए जमीन] तैयार कर रहे हैं। हमें चाहिए कि हम ऐसी चिन्ताका कोई कारण न रहने दें। उनको अपने पक्ष में करनेके लिए हमें अतिरिक्त प्रयास तक करना चाहिए। हमें अंग्रेज भाइयोंको अपनी ओरसे भय मुक्त कर देना चाहिए। अहिंसाकी प्रतिज्ञा ग्रहण करनेके कारण हम अपने कट्टरसे-कट्टर विरोधी के प्रति भी विनम्रता और सद्भाव रखनेके लिए बाध्य हैं, यह बात जितनी आपको और मुझे स्पष्ट दिखाई देती है उतनी यदि सब लोगोंको दिखाई दे तो मुझे इतने विस्तार के साथ इसकी चर्चा ही न करनी पड़े। यदि देश मेरे बताये रचनात्मक काममें अपना पूरा ध्यान लगा दे तो यह आवश्यक भावना अपने-आप पैदा हो जायेगी।

मैं यह मानकर थोड़े गर्वका अनुभव करता हूँ कि मेरी गिरफ्तारी के बाद अभी बहुत समयतक और किसी के गिरफ्तार होने की जरूरत नहीं पड़ेगी। मेरी यह विनम्र धारणा है कि मेरे मनमें किसीके प्रति वैरभाव नहीं है। जिस हदतक मैं अहिंसाधर्मका पालन करता हूँ उस हदतक स्वयं उसका पालन कितने ही मित्रोंको पसन्द नहीं है। पर हमारा तो यही इरादा था कि केवल वही मनुष्य जेल जायें जो बिलकुल निर्दोष हों। और यदि में बिलकुल निर्दोष होने का दावा कर सकता हूँ तो यह स्पष्ट ही है कि मेरे पीछे किसी भी दूसरेको जेल जानेकी जरूरत नहीं। हाँ, हम इस सरकारके तन्त्रको ठप्प तो जरूर करना चाहते हैं, पर धमकीके द्वारा नहीं बल्कि अपनी निर्दोषताकी अदम्य सामर्थ्य के द्वारा। मनमाने ढंगसे जेलोंको भरना तो मेरी रायमें धमकी ही है। और जबतक यह न मालूम हो जाये कि जो शख्स सबसे अधिक निर्दोष माना जाता है उसका जेल जाना काफी नहीं है, तबतक दूसरे निर्दोष लोगोंको जेल जानेकी कोशिश ही क्यों करनी चाहिए?

मेरे इस कथनका कि अब और लोगों को जेल नहीं जाना चाहिए, यह अर्थ नहीं है कि जेल जानेसे मुँह चुराया जाये। यदि सरकार खुद ही प्रत्येक अहिंसक असहयोगीको गिरफ्तार कर ले तो मैं इसका स्वागत ही करूँगा। मेरा अभिप्राय सिर्फ इतना ही है कि प्रतिरक्षात्मक अथवा आक्रामक किसी भी प्रकारका सत्याग्रह करके हमें जेल नहीं जाना चाहिए। उसी प्रकार में यह आशा करता हूँ कि जो लोग इस समय सजा काट रहे हैं उनके जेल में रखे जानेसे देशवासी आपा न खोयें। उनका अपनी पूरी मीयादतक सजा भोग लेना उनके तथा देश दोनों के हित में होगा। शोभा तो इसी बातमें है कि यदि वे मीयाद खत्म होने के पहले छूटते हैं तो स्वराज्यकी संसदके हाथों छूटें। मुझे इसमें कोई शक ही नहीं है कि खद्दरका सार्वदेशिक रूपसे अपनाया जाना स्वराज्य है।

छुआछूत के विषय में मैं यहाँ कुछ कहनेकी आवश्यकता नहीं समझता। मुझे निश्चय है कि सभी सदाशयी हिन्दू इसका मिटना जरूरी मानते हैं। छुआछूतको दूर करनेकी बात भी इतनी ही जरूरी है जितनी हिन्दू-मुस्लिम एकता।