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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


निश्चय ही मेरे आशीर्वाद तुम्हारे साथ हैं। इस काम के लिए तुम्हें जितनी शक्ति और विवेककी आवश्यकता होगी वह सब तुम्हें ईश्वर देगा।

बापू

[अंग्रेजीस]
सेवन मन्थ्स विद महात्मा गांधी
 

४२. पत्र : मौलाना अब्दुल बारीको

साबरमती जेल
[१२ मार्च, १९२२ के पश्चात्]

प्रिय मौलाना साहब,

आजकल तो मैं अपने स्वतन्त्रता-भवन में मौज कर रहा हूँ। हकीमजी तथा अन्य सज्जन यही हैं। आपकी अनुपस्थिति मुझे खल रही है, परन्तु मुझे उसके कारण कोई चिन्ता नहीं है क्योंकि हम लोग अजमेर में काफी बातचीत कर चुके थे। मुझे मालूम है कि आप निश्चय ही अपने उन सिद्धान्तोंपर जिनके सम्बन्धमें वहाँ हम लोगोंके बीच बातचीत हुई थी, मजबूतीसे डटे रहेंगे। मेरी आपसे हार्दिक विनती है कि आप सार्वजनिक सभाओं में भाषण न दें। मैं खुद तो बहुत गहराईसे सोचनेपर इस नतीजे-पर पहुँचा हूँ कि ऐसी एक ही चीज है जिसे हिन्दू-मुस्लिम एकताका स्पष्ट और प्रभावकारी प्रतीक माना जा सकता है और वह है इन दोनों जातियोंके सामान्य वर्गों में चरखेका और हाथके कते सूतसे हाथ करघेपर बुनी शुद्ध खादीका प्रचार। जब सभी लोग इस सिद्धान्तके कायल हो जायेंगे तभी हममें विचारकी एकता हो सकती है और हमें कामका एक संयुक्त आधार मिल सकता है।

खद्दरका प्रचार तबतक व्यापक नहीं हो सकता जबतक उसे दोनों जातियाँ न अपना लें। इसलिए चरखे और खद्दर के व्यापक प्रचारसे भारतमें जागृति पैदा होगी। उससे यह भी सिद्ध हो जायेगा कि हम लोग अपनी सभी आवश्यकताओंकी पूर्ति करने की शक्ति रखते हैं। जबसे यह संघर्ष शुरू हुआ है तभीसे हम विलायती कपड़े के बहिष्कार की आवश्यकताका अनुभव कर रहे हैं। मैं नम्रतापूर्वक कहता हूँ कि जब सभी लोग खद्दरका व्यवहार करने लग जायेंगे तब विलायती कपड़ेका बहिष्कार अपने आप हो जायेगा। जहाँतक मेरा सवाल है, मेरे लिए तो चरखा और खद्दर विशेष धार्मिक महत्त्व रखते हैं क्योंकि वे उस भाईचारे की भावना के प्रतीक हैं जो दोनों जातियोंके दिलों में भूख और रोगसे पीड़ित गरीब लोगोंके प्रति होनी चाहिए। इसी कारण तो आज हमारा संघर्ष राजनीतिक ही नहीं, नैतिक और आर्थिक भी कहा जा सकता है। जबतक हम इस छोटी-सी चीजको हासिल नहीं कर सकते, तबतक मेरा पक्का विचार है कि हमें कामयाबी नहीं मिल सकती। फिर, खद्दरका आन्दोलन उसी हालत-में सफल हो सकता है जब हम स्वराज्य-प्राप्ति तथा खिलाफत सम्बन्धी अन्यायके निराकरण के लिए अहिंसाको अनिवार्य शर्त मान लें। लिहाजा मैं आज देशके सामने।