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भेंट : 'मैनचेस्टर गार्जियन' के प्रतिनिधिसे



मैंने कहा, "परन्तु क्या आपका खयाल है कि साम्राज्यों में स्वभावतः खराबी ही होती है। निश्चय ही रोम साम्राज्यसे सभ्यताको लाभ पहुँचा है। जहाँतक हमें मालूम है, ईसा मसीहने उसके खिलाफ कभी एक भी शब्द नहीं कहा।"

गांधीजीने उत्तर दिया :

आप बिलकुल ठीक कहते हैं। परन्तु साम्राज्यवादकी निन्दा करना ईसा मसीहका काम ही नहीं था। प्रत्येक महान् सुधारकको अपने युगके दोष-विशेष के विरुद्ध संघर्ष करना होता है। ईसा, मुहम्मद, बुद्ध और कुछ हदतक लूथर, सभीको अपने-अपने युगकी बुराइयों और कठिनाइयोंसे जूझना पड़ा था। हमें भी वही करना पड़ रहा है। हमारे जमानेका जबरदस्त शैतान साम्राज्यवाद है।

मैंने पूछा, "इसका मतलब यह हुआ कि आप साम्राज्यको समाप्त करनेपर तुले हैं?"

उन्होंने उत्तर दिया :

मैं इस बातको इस रूपमें नहीं कहना चाहता। मैं तो साम्राज्यका अन्त राष्ट्र-मण्डलकी स्थापनाके द्वारा करना चाहता हूँ। मेरी इच्छा इंग्लैंडसे भारतका पूर्ण सम्बन्ध-विच्छेद करनेकी नहीं है और हमें ऐसी इच्छा करनेका हक भी नहीं है।

"भारत जिस राष्ट्र-मण्डलका अंग होगा आप उसकी क्या व्याख्या करते हैं और उसकी रचना कैसी होगी?"

वह राष्ट्र-मण्डल स्वतन्त्र राष्ट्रोंका बना एक भाईचारा (भ्रातृ-संघ) होगा और उसके सदस्य "प्रेमकी रजत-रज्जुओं" से बँधे होंगे। (मेरा खयाल है कि रजत-रज्जु शब्द लॉर्ड सैलिसबरीके हैं।) साम्राज्यके कई अंगोंमें ऐसा भाईचारा इस समय भी मौजूद है। दक्षिण आफ्रिकाको ही देखें। वहाँ कैसे बढ़िया लोग रहते हैं! आस्ट्रेलियाके लोग भी ऐसे ही बढ़िया हैं। न्यूजीलैंड एक भव्य देश है और उसमें भी बढ़िया लोग रहते हैं। मैं यही चाहता हूँ कि भारत इसी प्रकारके भ्रातृ-संघमें अपनी मर्जी से शरीक हो और जैसे बराबरीके अधिकार राष्ट्र-मण्डलके दूसरे सदस्योंको मिले हुए हैं वैसे ही भारतीयों को भी मिलें।

"परन्तु निश्चय ही सरकारने भारतके लिए ठीक ऐसा ही उद्देश्य अपने सामने रखा है और वह यह है कि भारतको उत्तरदायित्व सँभालने योग्य होते ही साम्राज्यके अन्तर्गत स्वशासित राज्य बना दिया जाये। क्या मॉन्टेग्यु सुधारोंका कुल मतलब यही नहीं है?"

गांधीजीने अपना सिर हिलाते हुए कहा :

खेद है, इन सुधारोंमें मेरा विश्वास नहीं है। जब वे शुरू-शुरू में लागू किये गये। थे तब मुझे प्रसन्नता हुई थी और मैंने सोचा था, आखिर इस अँधेरेमें प्रकाशकी एक किरण दीख पड़ी। जिस रन्ध्रसे वह प्रवेश कर रही है वह बहुत छोटा है सही, परन्तु मैं आगे बढ़कर उसका स्वागत करूँगा। मैंने सुधारोंका स्वागत किया और अपने देशवासियोंसे इस बात के लिए बहुत संघर्ष किया कि वे इनपर उचित समयतक

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