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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कि आप कर जरूर अदा करें या न करें। उनके कथनका अभिप्राय इससे कहीं विशेष है। जब वे यह कहते हैं कि "जो चीजें सीजरकी हैं उन्हें वापस सीजरको दे दो" तब वे एक विधिकी व्याख्या करते हैं।

इतना कहकर महात्माजीने अपना हाथ कुछ इस तरह हिलाया मानो वे कुछ अपनी ओरसे कह रहे हैं। उन्होंने कहा :

इसका मतलब तो यही है कि "जो कुछ सीजरका है वह उसे वापस दे दो अर्थात् मेरा उससे कोई सरोकार नहीं है।" ईसा मसीहने इस घटना में उसी महान् नियमको प्रतिपादित किया है जिसपर उन्होंने जीवन-भर आचरण किया था और वह था बुराईसे असहयोग करना। जब शैतानने उनसे कहा 'मेरे सामने झुको और मुझे पूजो' अर्थात् मुझसे सहयोग करो, तब उन्होंने कहा, शैतान! मेरी आँखों के सामनेसे हट जा। जब ईसाको लोगोंकी उस भीड़ने जो उन्हें घेरे रहती थी, जबरदस्ती ले जाना चाहा और अपना सैनिक शासक बनाना चाहा तब उन्होंने उन लोगों से सहयोग करनेसे इनकार कर दिया क्योंकि उनका तरीका बुराईका था और वे चाहते थे कि ईसा मसीह बल प्रयोगका आश्रय लें। अधिकारियोंके प्रति ईसाका रुख अवज्ञापूर्ण था। जब पिलेटने ईसासे पूछा, क्या आप राजा हैं, तब उन्होंने कहा था, "यह तो तुम कहते हो।" क्या उनके इस व्यवहारसे अधिकारियोंके प्रति अवज्ञा व्यक्त नहीं होती? उन्होंने हैरोदके सम्बन्ध में कहा था—"वह लोमड़ी"! क्या इससे अधिकारियोंके प्रति सहयोग झलकता है? उन्होंने हैरोदके सामने उत्तरमें एक शब्द भी नहीं कहा। संक्षेपमें यही कहा जा सकता है कि उन्होंने हैरोदके साथ सहयोग करनेसे इनकार कर दिया था। उसी प्रकार मैं भी ब्रिटिश सरकारसे सहयोग करने से इनकार करता हूँ।

मैंने कहा, "परन्तु इस सदोष संसारमें हमारा यह कर्त्तव्य है कि हम व्यक्तियों तथा संस्थाओं में जो कुछ भी अच्छाई हो उससे सहयोग करें।" महात्माजीने कहा :

मैं व्यक्ति के रूपमें लॉर्ड रीडिंगसे अवश्य सहयोग करूँगा। परन्तु मैं वाइसरायके रूप में उनसे सहयोग नहीं कर सकता क्योंकि वे इस रूपमें एक भ्रष्ट सरकारके अंग है।

मैंने फिर आपत्ति करते हुए कहा : "यदि यह मान भी लें कि सरकारने गलतियाँ की हैं, फिर भी आप निश्चय ही यह नहीं कह सकते कि यह सरकार बिलकुल बुरी है। यदि जहाँ-तहाँ अन्याय हुआ भी हो तो भी यह तो एक मोटा तथ्य है कि उसने ३० करोड़ भारतवासियोंको कानून और व्यवस्थाकी स्थितिमें रखा है। क्या आप सामान्यतः सभी शासन तन्त्रोंके खिलाफ हैं? क्या आप इस भूमण्डलपर ऐसा एक भी शासन-तन्त्र बता सकते हैं जो दोषोंसे मुक्त हो और जो आपको सन्तोष दे सके।"

हाँ, हाँ, जरूर! डेन्मार्कके शासन-तन्त्रको ही देखें। मुझे ऐसी सरकारसे सन्तोष मिल सकता है। वह लोगों का प्रतिनिधित्व करता है। वह किसी पराजित राष्ट्रका शोषण नहीं करता। उसमें कार्य कुशलता है, उसमें लोग सुसंस्कृत, बुद्धिमान, वीर, सन्तुष्ट और सुखी है। उसे दूसरोंको अपने साम्राज्य में बनाये रखने के लिए कोई बड़ी सेना और नौसेना नहीं रखनी पड़ती।