पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/१५

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नौ

कारण शल्य-चिकित्सा तक आवश्यक हो गई। इस अवसरपर उन्होंने जो रुख अपनाया और जिस प्रकारका सुव्यवस्थित आचरण किया, उससे उनके मनकी अनुपम उदारता, शौर्य तथा स्नेहका परिचय मिलता है।

५ फरवरी, १९२४ को गांधीजी जेलसे रिहा हुए। ड्रू पियर्सनके प्रश्नोंका उत्तर देते हुए (पृष्ठ २०९-१२) उन्होंने स्पष्ट किया कि एकान्तमें रहते हुए विचार करनेपर उनके धार्मिक, राजनीतिक और आधुनिक सभ्यता सम्बन्धी विश्वास परिपक्व ही हुए हैं। किन्तु उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि देश १९२०-२१ में उनके सन्देशको सुनने के लिए जितना तैयार था, कदाचित् १९२४ में वह उतना तैयार नहीं रहा। ७ फरवरीको मुहम्मद अलीके नाम अपने पत्र में उन्होंने कहा : "यद्यपि मैं देशकी मौजूदा हालतके बारेमें बहुत कम जानता हूँ, फिर भी मेरे पास यह समझ सकनेके लिए पर्याप्त जानकारी है कि देशकी समस्याएँ बारडोलीके प्रस्तावोंके समय जितनी जटिल थीं, आज उससे भी अधिक जटिल हो गई है।" (पृष्ठ २१५) असहयोगके जमाने में जो हिन्दू-मुस्लिम ऐक्ट स्थापित हुआ था, बार-बार होनेवाले साम्प्रदायिक दंगोंसे उसके टूटनेका खतरा बढ़ गया और कौंसिल-प्रवेशकी अनुमतिके द्वारा कांग्रेसका असहयोगका सिद्धान्त भी मुल्तवी कर दिया गया। मोतीलाल नेहरू और देशबन्धु दासके नेतृत्व में कौंसिल-प्रवेशके इच्छुक सज्जनोंने कांग्रेसके अन्तर्गत एक नया दल बनाया जो 'स्वराज्य दल के नामसे प्रख्यात हुआ। जो लोग अपनको अपरिवर्तनवादी कहते थे, उन्होंने इसका बहुत विरोध स्वराज्य दलके नेताओंके प्रति गांधीजीके मनमें बड़ा आदर था और इसलिए वे उनसे सम्बन्ध विच्छेद नहीं करना चाहते थे। वे उनके कार्यक्रमके विषयमें बिना सोचे-समझे कुछ कहना भी नहीं चाहते थे, इसलिए उन्होंने परिस्थितिका अध्ययन किया और स्पष्ट शब्दों में स्वराज्यवादी दलके कार्यक्रमसे अपनी असहमति प्रकट की और कहा कि स्वराज्यकी दिशामें इस कार्यक्रमने बाधा ही डाली है और उसके द्वारा अपनाई गई अडंगा-नीतिमें हिंसाकी गन्ध है। (पृष्ठ ४४४-४७) किन्तु उन्होंने कौंसिल-प्रवेशको एक तथ्यके रूपमें स्वीकार कर लिया। उन्होंने माना कि वह कदाचित एक आवश्यक बुराई है और यह मानकर कांग्रेसके अपरिवर्तनवादी और स्वराज्यवादी दलोंमें सहयोग उत्पन्न करनेका प्रयत्न किया।

रिहाईके बाद अन्य क्षेत्रीय समस्याओंपर भी गांधीजीको विचार करना पड़ा। इनमें त्रावणकोरके अस्पृश्य समाजों द्वारा हिन्दू मार्गोंपर आवागमनको लेकर किया गया वाइकोम सत्याग्रह, (पृष्ठ ४६९-७२) सरकार द्वारा नाभा नरेशके विरुद्ध उठाया गया कदम (पृष्ठ २४३-४९) तथा सिखों द्वारा गुरुद्वारोंमें सुधार-सम्बन्धी आन्दोलन (पृष्ठ २२५, २४३-४९) प्रमुख थे। गांधीजीने इन समस्याओंपर अपने विचार आसानीसे निश्चित करके सत्याग्रहके आधारभूत सिद्धान्तोंके साथ उनका मेल बैठाते हुए अपनी सलाह दी। (पृष्ठ ५०७-१०)

'यंग इंडिया' और 'नवजीवन' के सम्पादकत्वको पुनः हाथ में लेते ही उन्होंने फिर एक बार अपनी राजनीतिक गतिविधियोंके आध्यात्मिक आधारकी बात जोर देकर कही। "यंग इंडियाके नये और पुराने पाठकोंसे", (३-४-१९२४) नामक लेखमें