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भेंट : 'मैनचेस्टर गाजियन' के प्रतिनिधि से

पूरी हो जायेगी; और अपनी दूसरी योजनाएँ, यदि भगवान्‌की कृपा रही तो, मैं अगले जन्ममें पूरी करूँगा।

महात्माजीकी इस अन्तिम बातका अर्थ मेरी समझमें ठीक-ठीक नहीं आया था, इसलिए मैंने उनसे पूछा, "क्या आपका मतलब यह है कि हम लोग मृत्युके पश्चात् इसी भूतलपर फिर जन्म लेंगे?"

उन्होंने उत्तर दिया :

हाँ, मेरा खयाल है कि अगर हम इतने पवित्र नहीं होते कि स्वर्गमें जा सकें तो हम निःसन्देह यहाँ वापस आते हैं। (गांधीजीने मुस्कराते हुए आगे कहा) यह वही सिद्धान्त है जिसके बारेमें हम पहले बातचीत कर रहे थे, अर्थात् "सीजरको वे सब चीजें लौटा दो जो सीजरकी हैं।" आत्मा परमात्मामें पूरी तरह लीन हो इससे पूर्व शरीरने पृथ्वीसे जिन चीजोंको लिया है, उन्हें पृथ्वीको वापस दे देना चाहिए अथवा यह कहें कि आत्माको पृथ्वीकी चीजोंसे सहयोग करने से इनकार कर देना चाहिए एवं उसे भौतिक इच्छाओं और झंझटोंसे मुक्त हो जाना चाहिए।

"क्या आपका विश्वास है कि पशु-पक्षियोंमें भी आत्मा होती है?"

निश्चय ही उनमें भी आत्मा होती है। उन्हें भी सीजरकी चीजें सीजरको वापस देना सीख लेना चाहिए। यही कारण है कि हम हिन्दू लोग जीवोंकी हत्या नहीं करते; हम उन्हें अपने भाग्यका निर्माण करने के लिए स्वतन्त्र छोड़ देते है ।

"तब तो आपका खयाल यह मालूम होता है कि सर्पों, बिच्छुओं और कन-खजूरों को मारना भी अनुचित है?"

उन्होंने कहा :

हाँ, हमारे आश्रम में तो उनकी हत्या कोई कभी नहीं करता। समस्त मानवों के प्रति प्रेमकी अनुभूति आत्माके विकासकी एक ऊँची अवस्था है, परन्तु प्रत्येक जीवधारी के प्रति प्रेमकी अनुभूति इससे भी अधिक ऊँची अवस्था है। मैं स्वीकार करता हूँ कि अभी मैं उस स्थितितक नहीं पहुँच पाया हूँ। अभी में जब इन जीवधारियोंको अपने समीप आता देखता हूँ तब डर जाता हूँ। यदि हम भयसे सर्वथा मुक्त हो जायें तो मेरा खयाल है कि वे हमें नुकसान नहीं पहुँचायेंगे।

(गांधीजीके एक अनुयायीने मुझे एक घटना सुनाई थी; में यहाँ उसका उल्लेख कर दूँ। यह उनके आश्रमकी बात है। एक दिन शामकी प्रार्थनाके वक्त अँधेरेमें एक साँप निकल आया और सीधा गांधीजीके पास जाकर उनके सामने अपना फन उठाकर खड़ा हो गया। आश्रमवासी उसे पकड़ने जा रहे थे परन्तु गांधीजीने उन्हें इशारेसे रोककर कहा कि वे किसी तरहकी हलचल न करें। गांधीजी स्वयं निश्चल बैठे रहे और साँप उनके घुटनोंपर से सरकता हुआ बगीचेमें चला गया।)

महात्मा गांधी अभी उसी विषयको चर्चा कर रहे थे कि पशुओंसे हमारे सम्बन्ध कैसे हों। उन्होंने कहा :

एक बार मेरी मुलाकात एक अंग्रेजसे हुई थी। वह अंग्रेज पशुओंका शल्यचिकित्सक था और पशुओंसे उसका व्यवहार अद्भुत था। हम दोनों किसीके मकानपर गये