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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

थे। एकाएक एक विशालकाय खूंखार कुत्ता हम लोगों की ओर झपटा। वह ऐसा लगता था मानो शेर हो। वह लगभग आदमीकी ऊँचाईतक उछला और हम लोगोंपर टूट पड़ा। मैं डरके मारे सकपका गया, परन्तु वह अंग्रेज कुत्तेके झपटने के साथ ही उसकी ओर बढ़ा और उसे किसी प्रकारके भयके बिना छातीसे लगा लिया। कुतेका क्रोध काफूर हो गया और वह दुम हिलाने लगा। मेरे मनपर इस घटनाका बहुत प्रभाव पड़ा। पशुओं के साथ अनाक्रामक रीतिसे व्यवहार करनेका ठीक तरीका यही है।

"परन्तु क्या आप यह नहीं मानते कि मनुष्योंका जीवन पशुओंके जीवनसे अधिक मूल्यवान है? अब आप अपनी ही बात लें। आप एक ऐसे बड़े आन्दोलनके नेता हैं जिसे आप अपने देशके लिए हितकर समझ रहे हैं। मान लीजिए कि आपका सामना एक मगर से हो जाता है और उससे आप तभी बच सकते हैं जब आप उसको मारें। तब क्या आप यह न सोचेंगे कि एक नेताकी हैसियतसे आपके कर्त्तव्य और दायित्व मगरकी जानसे अधिक महत्त्वपूर्ण हैं?

गांधीजीने कहा :

नहीं, मैं तो उस मगरसे यह कहूँगा अथवा मुझे उससे यह कहना चाहिए कि "तेरी जरूरत, मेरी जरूरतसे बड़ी है" और उसका भक्ष्य बन जाऊँगा। आप जानते हैं कि हमारे जीवनका अन्त हमारे शरीर के अवसानके साथ नहीं होता। इस सम्बन्धमें सब कुछ तो ईश्वर ही जानता है। हममें से कोई भी यह नहीं जानता कि मृत्युके बाद क्या होता है। यदि मैं मगरसे बच जाऊँ तो सम्भव है, दूसरे ही क्षण बिजली गिरे और उससे मैं न बचूँ।

मैंने जोर देकर कहा, "परन्तु मगरकी आत्मा हो, तो भी यह तो मानना ही होगा कि मनुष्यकी आत्मा निःसन्देह उससे भिन्न है। आपको याद होगा, चेस्टरटनने इस सम्बन्ध में क्या कहा है, 'जब कोई मनुष्य सोडेके साथ शराबका अपना छठा जाम पी रहा हो और अपने होश-हवास खो रहा हो तो आप उसके पास जाते हैं उसके कन्धेपर हलके हाथसे थपथपाते और कहते हैं, 'इन्सान बनो!' परन्तु जब कोई मगर छठे धर्म प्रचारकको निगल रहा हो तब आप उसके पास जाकर उसकी पीठपर थपकी देकर उससे यह तो नहीं कहते, 'मगर बनो!' क्या इससे यह नहीं प्रगट होता कि मनुष्यके सामने एक आदर्श रहता है जिसतक उसे पहुँचना है किन्तु इस प्रकारका आदर्श अन्य किसी जीवधारीके सम्मुख नहीं होता ?"

गांधीजीने हँसते हुए कहा :

मनुष्यों और पशुओं की आत्माओंमें अन्तर है। पशु एक सतत मूर्च्छाकी अवस्था में रहते हैं। परन्तु मानव जाग्रत हो सकता है और ईश्वरके अस्तित्वका अनुभव कर सकता है। ईश्वर मनुष्योंसे मानो यह कहता है, "चेतो और मेरी अर्चना करो; तुम मेरी ही प्रतिमूर्ति हो!"