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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सत्ताके प्रति गैर-वफादारीकी भावना—है। आरोप पढ़कर सुना देनेके बाद न्यायाधीशने अभियुक्तों से कहा कि अब इनके सम्बन्धमें आप जो कुछ कहना चाहते हों, कहें। उन्होंने श्री गांधीसे पूछा कि वे अपना अपराध स्वीकार करते हैं या कि मुकदमे की कार्रवाई की जाये?

श्री गांधी : मैं सभी आरोपोंके सम्बन्धमें अपना अपराध स्वीकार करता हूँ। मैंने यह लक्ष्य किया है कि आरोपोंमें सम्राट्का नाम छोड़ दिया गया है। यह ठीक ही किया गया है।

न्यायाधीश : श्री बैंकर, आप अपना अपराध स्वीकार करते हैं या चाहते हैं कि मुकदमेकी सुनवाई हो?

श्री बैंकर में अपराध स्वीकार करता हूँ।

इसके बाद सर जे॰ टी॰ स्ट्रेंगमैन ने न्यायाधीशसे अनुरोध किया कि मुकदमे की कार्रवाई बाजाब्ता की जाये; किन्तु न्यायाधीश उनसे सहमत नहीं हुए। उन्होंने कहा कि मुझे जबसे मालूम हुआ है कि इस मुकदमेकी सुनवाई मुझे ही करनी है, तभीसे में इस विषयपर विचार करता रहा हूँ कि यदि अपराध सिद्ध हुआ तो कैसी सजा दी जाये; और आपको तथा श्री गांधीको जो कुछ भी कहना हो, में सब सुनने को तैयार हूँ, फिर भी मैं पूरी ईमानदारीसे ऐसा मानता हूँ कि सभी सबूतोंको दर्ज करने और बाजाब्ता मुकदमेकी पूरी सुनवाई करनेसे परिणाममें कोई अन्तर नहीं पड़ेगा। इसलिए में अभियुक्तों की अपराध स्वीकृतिको मंजूर करता हूँ।[१]

श्री गांधी इस फैसलेपर मुस्कराये।

न्यायाधीशने आगे कहा कि अब इसके बाद यही शेष रह जाता है कि मैं सजा सुना दूँ, लेकिन उससे पहले में सुनना चाहूँगा कि सर जे॰ टी॰ स्ट्रेंगमैनको इसके बारेमें क्या कहना है। वे अभियुक्तोंपर लगाये गये आरोपों और अभियुक्तोंकी अपराध स्वीकृति के बारेमें अपनी बात कह सकते हैं।

सर जे॰ टी॰ स्ट्रेंगमैन : यह तो मुश्किल होगा। मेरा तो न्यायालयसे यही अनुरोध है कि सारे मामलेपर बाकायदा विचार किया जाये। प्रारम्भिक (कमिटिंग) न्यायाधीश की अदालत में जो कुछ हुआ, वह सब बतानेके बाद ही में यह दिखा सकता हूँ कि कई ऐसी चीजें हैं जिनका सजाके सवालपर काफी असर पड़ता है।

न्यायाधीश यह पूछनेपर कि आप क्या कहना चाहते हैं, वकीलने कहा कि मैं सबसे पहले तो यही कहना चाहता हूँ कि जिन बातोंपर वर्तमान आरोप आधारित हैं वे उस बड़े प्रचार-आन्दोलनके अंग हैं जो खुल्लम-खुल्ला और काफी सुनियोजित ढंगसे सरकारके प्रति अप्रीतिको भावना फैलाने, शासन-तन्त्रको ठप कर देने तथा सरकारका तख्ता उलट देनेके उद्देश्यसे चलाया जा रहा हैं। 'यंग इंडिया' में प्रकाशित जो सबसे पहला लेख पेश किया गया वह २५ मई, १९२१ का है। उसमें कहा गया।

  1. न्यायाधीशको सम्मतिके पूरे ब्योरेके लिए देखिए ट्रायल ऑफ गांधीजी, पृष्ठ १६७।