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५७. ऐतिहासिक मुकदमा[१]

अहमदाबाद
१८ मार्च, १९२२

शनिवार की दोपहरको शाहीबागके सर्किट हाउसमें श्री गांधी और श्री बैंकरका मुकदमा शुरू हुआ।

राय बहादुर गिरधारीलालके साथ अभियोक्ता पक्षकी ओरसे सर जे॰ टी॰ स्ट्रैंगमैन भी थे। अभियुक्तोंकी ओरसे कोई वकील नहीं था। न्यायाधीश[२] ने दोपहर १२ बजे आसन ग्रहण किया और बताया कि अभियोगपत्रमें एक छोटी-सी त्रुटि रह गई है। उन्होंने उस त्रुटिको सुधार दिया है। इसके बाद रजिस्ट्रार ने वह संशोधित अभियोग पत्र पढ़कर सुनाया। अभियोगका आधार 'यंग इंडिया' के २९ सितम्बर और १५ दिसम्बर, १९२१ तथा २३ फरवरी, १९२२ के अंकोंमें छपे हुए तीन लेख थे। फिर ये तीनों आपत्तिजनक लेख पढ़कर सुनाये गये। पहला था राजभवितसे भ्रष्ट करनेका आरोप[३]"; दूसरा था "एक उलझन और उसका हल"[४] और आखिरी था "गर्जन-तर्जन।"[५]

तदुपरान्त न्यायाधीशने कहा, कानूनका तकाजा है कि आरोप केवल पढ़कर ही न सुनाये जायें, बल्कि उनका आशय भी समझा दिया जाये। किन्तु इस मामले में उनका आशय ज्यादा खोलकर समझाना जरूरी नहीं है। दोनों अभियुक्तोंपर यही आरोप है कि उन्होंने ब्रिटिश भारतमें कानून द्वारा स्थापित सम्राट्को सरकारके प्रति अनादर या घृणाकी भावना पैदा की या पैदा करनेकी कोशिश की, अथवा अप्रीतिकी भावना भड़काई या भड़कानेकी कोशिश की है। दोनों अभियुक्तोंपर धारा १२४ 'क' के अधीन तीन अपराध लगाये गये हैं। ये आरोप श्री गांधी द्वारा लिखित और श्री बैंकर द्वारा मुद्रित उन तीन लेखों में कहे गये शब्दोंके कारण लगाये गये हैं, जो अभी पढ़कर सुनाये गये। "अनादर" और "घृणा" ये दो तो ऐसे शब्द हैं जिनका अर्थ काफी साफ है। "अप्रीति" शब्दको परिभाषा स्वयं इस धारामें ही की गई है। उसके अनुसार अप्रीति" में राजद्रोह और राज्यके प्रति विद्वेषकी भावनाएँ शामिल हैं। धारामें प्रयुक्त इस शब्दको व्याख्या बम्बई उच्च न्यायालयने भी की है, जिसके अनुसार इसका अर्थ राजनीतिक अलगाव या असन्तोष-सरकार के प्रति या वर्त्तमान

  1. यंग इंडियामें प्रकाशित मुकदमेका यह विवरण ट्रायल ऑफ गांधीजी, पृष्ठ १९७-२१२ में उपलब्ध पूरे ब्यौरेसे मिला लिया गया है।
  2. न्यायमूर्ति आर॰ एस॰ ब्रूमफील्ड।
  3. देखिए खण्ड २१, पृष्ठ २३०-३३।
  4. देखिए खण्ड २२, ५४ ३०-३१ तथा ४८१-८२।
  5. देखिए खण्ड २२, ५४ ३०-३१ तथा ४८१-८२।