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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

पाठ पहला
सवेरा

'बेटा, उठो सवेरा हुआ।'

'मुझे नींद आ रही है, माँ!'

'देखो, बहन उठ गई है; तुम भी उठो, दतौन करो; प्रभुका नाम लो।'

'माँ, कितने बजे होंगे?'

'चार तो बज चुके, पक्षी बोलने लगे हैं; तुम्हें सुनाई नहीं पड़ता?'

'शान्ता दीदी भजन गाने लगी है।'

पाठ दूसरा
दतौन

'बेटा, तुमने दतौन की?'

'तुम्हारे दाँत देखूं? दाँत तो पीले मालूम होते हैं। तुमने ठीकसे माँजे नहीं। जीभ भी साफ नहीं है। जीभका मैल ठीक तरह उतारा नहीं है।'

'दतौन किस चीजकी थी?'

'बबूलकी।'

'नीमकी क्यों नहीं की?'

'नीमकी कड़वी लगती है।'

'इससे क्या? बादमें अच्छा लगता है।'

'आदत पड़नेपर कड़वापन भी अच्छा लगता है।'

पाठ तीसरा
भजनकी तैयारी

साफ-सुथरे हुए बिना भजनमें जाना ठीक नहीं। आँखमें कीचका होना गन्दगीकी निशानी है। भगवान का भजन करते समय हमें शरीर और मन साफ रखना चाहिए। प्रार्थनामें पालथी मारकर, हाथ जोड़कर और तनकर बैठना चाहिए; न किसी के साथ बात करनी चाहिए; न किसीके सामने देखना चाहिए। भगवान्को हम नहीं देखते, लेकिन वह तो हमें देखता है।

जब तुम सोते हो तब भी मैं तो जागती रहती हूँ। इस कारण मैं तुम्हें देखती हूँ; तुम मुझे नहीं देखते। इसी तरह हम ईश्वरको चाहे न देखते हों, पर वह हमें क्यों नहीं देख सकता?

पाठ चौथा
भजन

मुझे प्यारा, प्यारा, प्यारा दादा रामजीका नाम;
मुझे दूसरी किसो विद्यासे नहीं कुछ काम।
मुझे प्यारा, प्यारा, प्यारा दादा रामजीका नाम।