पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/१७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१३६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

पाठ सातवाँ
कातनेका आनन्द

'तुम्हें कातना अच्छा लगता है?'

'जब तकुआ टेढ़ा नहीं होता, माल बराबर बैठती है, पहिया बिना आवाजके घूमता है और तार नहीं टूटता, तब तो कातने में मुझे खेलने जैसा मजा आता है। जब मैं चरखे को खूब चलाता हूँ, तो उसमें से भोंरेकी जैसी मीठी गूँज निकलती है, जो आनन्द देती है।'

'साथ ही, इस विचारसे भी कातनेमें उत्साह मालूम होता है कि अपने ही काते हुए सूतसे मेरे कपड़े बुने जायेंगे।'

 

पाठ आठवाँ
स्वच्छता

'तुम्हारे नाखुनोंमें आज मैं मैल देख रही हूँ। कानोंमें भी मैल भरा है। तुमने आज नहाया तो था न?'

'हाँ, माँ, नहाये बिना तो मैं कभी रहता नहीं।'

क्या सिरपर पानी डाल लेने या नदीमें डुबकी लगा लेनेसे नहाने का मतलब पूरा हो जाता है?'

'नहाने का मतलब है, शरीरके सब अंगोंको खूब साफ करना। शरीरको भिगोकर मलना चाहिए। कान, बगल वगैरा अंगोंको मलकर मैल छुड़ाना चाहिए। नाखून देखने चाहिए। जिसके नाखून में मैल होता है, उसे मैलवाले हाथसे खाना अच्छा कैसे लग सकता है?'

'शरीरकी तरह ही हमारे कपड़े, बिछौना वगैरा भी साफ होने चाहिए।'

सुघड़ता उद्यमकी निशानी है। मैल अहदीपनकी निशानी है।'

 

पाठ नौवाँ
बुरी आदतें

'हमारे गाँव में बदबू बहुत आती है। इसका कारण क्या होगा?

'बेटा, हमारी कुछ पुरानी कुटेवें ही इसका कारण हैं। लोग दूर जंगलमें जानेके बदले बच्चोंको गलियोंमें टट्टी बैठने देते हैं, और खुद गांवकी हृदमें ही बैठ जाते हैं। सवेरे के समय तो बदबूके मारे गाँवोंके पाससे निकलना कठिन हो जाता है।'

'लघुशंका' तो जहाँ जी चाहा वहीं करनेमें हम हिचकिचाते नहीं। इस तरह हम धरती माताका अपमान करते हैं।'

'हर गन्दगीको तुरन्त ही जमीन में गाड़ देना चाहिए।'

'बिल्ली जमीन खोदकर और उसमें अपना काम करके मैलेको धूलसे ढँक देती है। हरएक मनुष्य को ऐसा ही करना चाहिए।'