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बालपोथी

 

पाठ दसवाँ
खेत और बाड़ी

'क्या तुम जानते हो कि हमारे गाँवके खेतोंमें क्या-क्या पैदा होता है?'

'हाँ, माँ, मौसमके अनुसार गेहूँ, चना, बाजरा, अरहर, ज्वार वगैरा अनाज पैदा होते हैं। गाँवके पास कोई बाड़ी नहीं है, यह कभी बहुत खटकती है। पासके गाँवमें तो बहुतसे पेड़ हैं, वहाँ घूमने में मजा आता है। वहाँ नीम है, इमली है, कुछ आमके पेड़ हैं। कहीं-कहीं बेरके पेड़ भी हैं।

'उस बाड़ी में साग-सब्जी भी बहुत होती है। सेम, बैंगन, मेथी, सेंगर, भिण्डी, मूली वगैरा सब होता है।'

'क्या ही अच्छा हो, अगर हमारे गाँव के लोग भी इस तरहके पेड़-पौधे लगायें।'

हमारा गाँव गरीब है। लोगों में एका नहीं है। इसलिए हमारे गाँवके खेतों में जो अनाज पैदा होता है, लोग उसीसे सन्तोष मानकर बैठे रहते हैं।'

'माँ जब में बड़ा हो जाऊँगा, तब फलोंके पेड़ तो जरूर ही लगाऊँगा।'

'बेटा ईश्वर तुम्हारे मनोरथ पूरे करे।'

 

पाठ ग्यारहवाँ
घरका काम

'देखो, बेटा, जिस तरह शान्ता दीदी घरके काममें मदद करती है, उसी तरह तुम्हें भी करनी चाहिए।'

'लेकिन माँ शान्ता दीदी तो लड़की है; लड़केका काम है खेलना और पढ़ना।'

शान्ता बोल उठी : 'क्या हमें खेलना और पढ़ना नहीं होता?'

'मैं इनकार कब करता हूँ? लेकिन तुम्हें साथ-साथ घरकाम भी करना होता है।'

माँ बोली : 'तो क्या लड़का घरकाम न करे? '

माधवने चटसे जवाब दिया : 'लड़केको तो बड़ा होनेपर कमाना होता है, इसलिए यह जरूरी है कि वह पढ़ने में ज्यादा ध्यान दे।'

माँने कहा : 'बेटा, यह विचार ही गलत है। घरका काम करने से भी बहुत-कुछ सीखनेको मिलता है। तुम्हें अभी पता नहीं कि अगर तुम घर साफ रखो, रसोईमें मदद करो, कपड़े धोओ, बरतन माँजो, तो उससे तुम्हें कितना सारा सीखनेको मिल सकता है।

'घरके काममें आँखका, हाथका, दिमागका उपयोग कुछ कम नहीं करना पड़ता। लेकिन यह उपयोग सहज ही हो जाता है, इसलिए हमें उसका पता नहीं चलता। इस तरह धीरे-धीरे हमारा विकास होता रहता है और यही हमारी सच्ची पढ़ाई है।'

'साथ ही, अगर तुम घरका काम करते रहो, तो उससे तुम्हारी योग्यता और कुशलता बढ़ती है, शरीर कसजाता है और काम करनेका आदी बनता है और फिर बड़े होनेपर तुम किसीके मुहताज नहीं रहते। मैं तो कहती हूँ कि घरका काम सीखने और करने की जितनी जरूरत शान्ता दादोको है, उतनी ही तुम्हें भी है।'