पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 23.pdf/१८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लेकिन बाकी दोके बारेमें अभीतक मुझे किसी फैसलेकी सूचना नहीं मिली है। उसके बारेमें सरकार के फैसलेकी मैं उत्सुकतासे बाट देख रहा हूँ।

आपका आज्ञाकारी,
मो॰ क॰ गांधी

हस्तलिखित अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ८०१४) से।
 

६६. पत्र : जमनालाल बजाजको[१]

[यरवदा जेल]
५ अक्तूबर, १९२२

चि॰ जमनालाल,

यह पत्र सुपरिंटेंडेंटकी अनुमति लेकर भेज रहा हूँ।

कल तो मैं मोहके वशीभूत होकर रामदासके विषयमें अपने विचार बहुत उतावली में व्यक्त कर गया। जब हम अलग हुए तो मैं पछताया और मैंने देखा कि अपनेको सावधान समझनेवाला आदमी भी किस तरह मोहमें आकर बिना विचारे बोल जाता है।

कल मैंने पिताका धर्म नहीं निभाया।

मुझे लगता है कि चि॰ रामदास जबतक अपने जीवनका आदर्श निश्चित नहीं कर लेता और अपनी इच्छानुसार कहीं जम नहीं जाता तबतक उसका शादी करना पाप होगा। उसकी इच्छा है कि वह शादी मेरी मान-प्रतिष्ठाके बलपर नहीं, बल्कि अपने गुणों के आधारपर करें। हम सब ऐसा ही चाहते हैं। इसलिए रामदासको कोई धन्धा चुन लेना चाहिए। उसीपर लड़कीके माँ-बाप भी विचार करेंगे और लड़की खुद भी समझ सकेगी कि मुझे कहाँ जाना है। इसलिए हम सबका और अब आप लोगोंका, जो बाहर हैं, पहला काम यह है कि रामदासको कहीं ठिकानेसे लग जानेमें मदद दें।

उसे पढ़नेका लोभ हो तो वह शौकसे पढ़े। जब उसका बूढ़ा बाप ही अभी बालकों की तरह अभ्यास कर रहा है तो उसकी तो जवानी अभी शुरू ही हो रही है। अगर उसे व्यापारमें लगना हो तो लग जाये, और अगर आश्रममें या राष्ट्रीय शाला में उसका मन लगे तो वैसा करे। हरिलालके साथ रहना हो तो उसके साथ

  1. यह पत्र गुजराती और अंग्रेजी दोनों भाषाओंमें उपलब्ध है। अंग्रेजीमें लिखा पत्र भी गांधीजीके स्वाक्षरोंमें है। किन्तु अनुवाद गुजराती पत्रसे ही दिया जा रहा है, क्योंकि गांधीजी जमनालालजीको गुजराती अथवा हिन्दीमें ही पत्र लिखा करते थे। अंग्रेजी मसविदा, स्पष्टतः जेल अधिकारियोंकी सुविधाके लिए तैयार किया गया होगा।