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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कहा, यदि मैं कभी बीमार पड़ा तो उसका कारण जेल अधिकारियोंको असावधानी नहीं मेरी अपनी लापरवाही, शरीरकी सहज दुर्बलता अथवा जलवायु होगी। अपने स्वास्थ्यको ठीक रखनेकी जितनी सावधानी रखनी चाहिए, उतनी में रखता हूँ।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १९–४–१९२३
 

७२. पत्र : यरवदा जेलके सुपरिंटेंडेंटको

यरवदा सेन्ट्रल जेल
४ फरवरी, १९२३

सुपरिटेंडेंट
यरवदा सेन्ट्रल जेल
महोदय,

आपने कल मुझे यह बतानेकी कृपा की थी कि इंस्पेक्टर जनरलने मेरे २० दिसम्बर के पत्रका जवाब दे दिया है और उसमें यह कहा है कि मुलाकात सम्बन्धी जेलके विनियमों के अनुसार मित्रों और रिश्तेदारोंकी मुलाकातोंके विषयमें आपको पूरा अख्तियार है।

इस जवाब से मुझे आश्चर्य हुआ है। मेरी पत्नी तथा श्रीमती वसुमती धीमतराम पिछले मासकी २७ तारीखको मुझसे मिली थीं। उन्होंने इस सम्बन्धमें मुझे जो कुछ बताया था, यह उत्तर उससे मेल नहीं खाता।

मेरी पत्नीने बताया कि कोई २० रोजसे ज्यादा इन्तजार करनेपर उन्हें मुझसे मुलाकात के लिए अपनी दरख्वास्तका जवाब मिला। मेरी बीमारीकी अफवाह सुनकर वे इस आशासे पूना आई कि उन्हें मुझसे मिलनेकी इजाजत मिल जायेगी। फलतः पिछले सप्ताह श्रीमती वसुमती धीमतराम, श्री मगनलाल गांधी, उनकी लड़की राधा, जिसकी उम्र कोई १४ सालकी होगी, और प्रभुदास, श्री छगनलाल गांधीका कोई १८ बरसका लड़का, जो अपने पिता के स्थानपर आया था क्योंकि उसके पिता बीमार पड़ जाने के कारण नहीं आ सके थे, किन्तु उनका नाम प्राथियोंमें था। इन सबके साथ जेलके फाटकपर आकर मेरी पत्नीने अन्दर जानेकी इजाजत चाही। आपने उनको उत्तर दिया, "मुझे कोई अख्तियार नहीं है, मैं आपको इजाजत नहीं दे सकता। मैं सरकार के जवाबकी राह देख रहा हूँ । आपकी दरख्वास्त वहाँ भेज दी है।" श्री मगनलाल भाईके आग्रह करनेपर आपने इन्स्पेक्टर जनरलको टेलीफोन करना कुबूल किया। मालूम होता है कि वे भी मुलाकातकी इजाजत न दे सके और मेरी पत्नी तथा उनके साथियोंको निराश होकर वापस लौट जाना पड़ा।

मेरी पत्नीने कहा कि २७ जनवरीको आपने उन्हें टेलीफोन द्वारा खबर दी कि सरकारका जवाब मिल गया है, कि वह तथा दूसरे तीन शख्स जिनके नाम पहली