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पत्र : मेजर जोन्सको

दरखास्तमें दर्ज हैं, मिल सकते हैं। इसके अनुसार दोनों बच्चे, राधा और प्रभुदास, वंचित रह गये।

यदि इस विषय में सब बातें आपपर ही छोड़ दी गई थीं तो पूर्वोक्त सारी बातोंपर फिरसे विचार करनेकी जरूरत है। मुझे यकीन है कि मैंने अपनी पत्नीके आशयको गलत नहीं समझा है।

इसके अलावा यदि आप ही के बसकी बात होती तो राधा और प्रभुदास वंचित न किये गये होते।

इसलिए यदि आप मेरी पत्नीके कथन और सरकारी जवाबके अन्तरको समझा सकें तथा मुझे निम्नलिखित बातोंके बारेमें सूचित कर सकें तो मैं आपका बड़ा कृतज्ञ होऊँगा :

(१) पिछले साल पं॰ मोतीलाल नेहरू, हकीम अजमलखाँ साहब और श्री मगनलाल गांधी को किस बिनापर नहीं मिलने दिया गया था?

(२) भविष्य में किन-किन लोगोंको मुझसे मिलने दिया जायेगा और किनसे नहीं?

(३) इन मुलाकातोंमें मैं राजनीतिसे सम्बन्ध न रखनेवाले उन विषयों तथा गतिविधियों के बारेमें सुन सकता हूँ या नहीं, जिन्हें मैंने शुरू किया था और जिनका संचालन अब मेरे विभिन्न प्रतिनिधि कर रहे हैं।

यह तो मैं नहीं कहूँगा कि अपमान इरादतन किया गया है फिर भी मुझे यह जरूर महसूस हुआ कि उनके साथ किया गया बरताव अपमानजनक तो था। ऐसी दुःखद घटनाकी पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए।

आपका आज्ञाकारी,

अंग्रेजी मसविदे (एस॰ एन॰ ८०१८) की फोटो नकल तथा यंग इंडिया, ६-३-१९२४ से।

 

७३. पत्र : मेजर जोन्सको

१० फरवरी [१९२३]

प्रिय मेजर जोन्स,

मैं आपको यह पत्र निजी तौरपर लिख रहा हूँ; क्योंकि एक तो इसमें भावनाओंका पुट है और दूसरे कैदीकी हैसियत से मैं ऐसा पत्र लिखनेका अधिकारी नहीं हूँ। आप अपने पदके कारण जाब्तेकी कार्रवाई करनेपर मजबूर हों तो खुशीसे आप वैसा कर सकते हैं।

मैंने कल सुबह चीखने और चिल्लाने की आवाज सुनी और पासके कुछ लोगोंने चिल्लाकर कहा कि उधर कोड़े लगाये जा रहे हैं।[१] मैं सोचमें पड़ गया। मैंने थोड़ी

  1. शंकरलाल बैंकरने यंग इंडिया, १९-४-१९२३ में प्रकाशित अपने वक्तव्यमें इस घटनाका उल्लेख किया है।