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जेल डायरी, १९२३

१ जून शुक्रवार

किशोरलालकी 'बुद्ध और महावीर' समाप्त की।
'सिख धर्मका इतिहास, भाग—५' समाप्त किया।

३ जून, रविवार

किशोरलालकी 'राम और कृष्ण' समाप्त की।
'सिख धर्मका इतिहास, भाग—६ समाप्त किया।

६ जून, बुधवार

अरविन्दकी[१] कारावासकी कहानी तथा 'मुण्डकोपनिषद्' समाप्त किये।

१६ जून, शनिवार

कल 'मैन ऐंड सुपरमैन' समाप्त की। आज 'भाग्यनो वारस' समाप्त की। 'मार्कण्डेय पुराण' का अंग्रेजी अनुवाद पढ़ना शुरू किया।

३० जून, शनिवार

इस सप्ताह के आरम्भमें काका और नरहरिका 'पूर्वरंग' समाप्त किया तथा पुरातत्त्व मन्दिरमें दिये गये भाषणोंको पढ़ना शुरू किया। कल उर्दूमें हजरतके जीवनका एक किस्सा समाप्त किया तथा पैगम्बरके साथियोंका वृत्तान्त [उस्वा-ए-सहाबा] पढ़ना शुरू किया। कल डेलजील और मेजरसे मूलशीपेटाके कैदियोंको कोड़े मारनेके सम्बन्धमें चर्चा की।

२ जुलाई, सोमवार

कल 'मार्कण्डेय पुराण' समाप्त किया तथा 'माण्डूक्योपनिषद्', अंक १५-१६ और 'गौडपादाचार्यकी कारिका', अंक १७ पढ़ना शुरू किया।

आज बकलकी 'इंग्लैंडकी सभ्यतासे सम्बन्धित पहली पुस्तक' (हिस्ट्री आफ सिविलाइजेशन) पढ़नी शुरू की।

७ जुलाई, शनिवार

पुरातत्त्व मन्दिरकी व्याख्यानमाला[२] समाप्त की तथा जया जयन्त पढ़ना शुरू किया। सोमवारकी रातको अत्यधिक कष्ट भोगा। दोष मेरा ही था। अनसूया-बहन द्वारा भेजे अंजीरोंमें से मैं आवश्यकतासे अधिक खा गया। ईश्वरकी कृपाका अन्त नहीं है। किये गये पापके तात्कालिक दण्डसे ज्यादा अच्छा और क्या हो सकता है?

  1. अरविन्द घोष (१८७२-१९५०); रहस्यवादी, कवि और दार्शनिक; १९१० से पाण्डिचेरी में रहते थे, जहाँ उन्होंने एक आश्रम स्थापित किया।
  2. अगली प्रविष्टसे पता चलता है कि यह ९ जुलाईको समाप्त की थी।