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ड्रू पियर्सन के प्रश्नोंके उत्तर


असहयोगका दूसरा नाम आत्मत्यागका प्रशिक्षण है। संसारके महान् धर्म- शिक्षकोंने इसका आचरण किया था। शक्ति शारीरिक सामर्थ्य से उत्पन्न नहीं होती। वह तो अजेय संकल्पसे उद्भूत होती है : मैंने भारतके सम्मुख आत्मत्यागके प्राचीन धर्म अर्थात् अपने अन्तरकी आवाजको सुननेकी बात रखनी चाही है।

अहिंसासे मेरा आशय कायरता नहीं है। मेरा निश्चित मत है कि यदि विकल्प केवल कायरता और हिंसा के बीच हो तो हिंसा चुनी जानी चाहिए; तथापि मैं क्षमाशीलताको वीरका भूषण मानता हूँ। भारतको अहिंसापर चलनेकी सलाह देनेका मेरा कारण यह नहीं है कि वह निर्बल है बल्कि यह है कि उसे अपनी शक्ति और अपने सामर्थ्यका भान है। जिन ऋषियोंने अहिंसा धर्मकी खोज की थी वे न्यूटनसे अधिक प्रतिभासम्पन्न थे। वे शस्त्रोंका प्रयोग करना जानते हुए भी उनकी व्यर्थता जान गये थे और इसी कारण उन्होंने त्रस्त संसारको यह शिक्षा दी थी कि उसे मुक्ति हिंसासे नहीं, अहिंसासे मिल सकती है।

इसलिए में अमेरिकी लोगोंसे आदरपूर्वक निवेदन करता हूँ कि वे भारतके राष्ट्रीय आन्दोलनका सावधानीसे अध्ययन करें। मुझे विश्वास है कि इसमें उन्हें युद्धका कारगर विकल्प मिल जायेगा।

जेल जानेसे पूर्व श्री गांधी आधुनिक सभ्यताके अति तीव्र आलोचक थे; अतः मैंने पूछा कि क्या आपके तत्सम्बन्धी विचारोंमें कोई परिवर्तन हुआ है।

उन्होंने कहा :

उनमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ। आधुनिक सभ्यताके सम्बन्धमें मेरा मत यह है कि वह भौतिकवादकी पूजा है और फल यह हुआ है कि शक्तिशाली शक्तिहीनोंका शोषण कर रहे हैं। लोगोंने अमेरिकाकी सम्पन्नताको मापदण्ड बना रखा है। अन्य सभी राष्ट्र उसीके जैसा होना चाहते हैं। इस बीच नैतिक विकासकी गति अवरुद्ध हो गई है और प्रगतिका मापदण्ड रुपये-आने-पाई ही हो गया है।

लोग कहते हैं कि हमारे इस देशमें कभी देवतागण निवास करते थे; किन्तु जिस देशको कारखानोंकी चिमनियोंके धुएँने कुरूप बना रखा हो, जिसकी सड़कोंपर तीव्रगति इंजिन तथा ऐसे लोगोंसे भरी मोटर गाड़ियाँ दौड़ती रहती हों, जो प्रायः न तो अपने लक्ष्यको जानते हैं, न उसे जानना चाहते हैं और उनमें भेड़-बकरियोंकी तरह भरे जानेपर भी नहीं चेतते। भला ऐसे देशमें आज देवताओंके निवासकी कल्पना करना कैसे सम्भव है? ये कल कारखाने तो स्त्री-पुरुषों और बालकोंकी लाशोंपर कथित सभ्यताका निर्माण करनेके लिए खड़े किये गये हैं।

अमेरिकाके सर्वोच्च न्यायालयने अभी हालमें भारतीयोंपर रोक लगाई है कि वे अमेरिकाके नागरिक नहीं बन सकते। इस सम्बन्धमें प्रश्न किये जातेपर श्री गांधीने कहा कि अमेरिकाके सर्वोच्च न्यायालयका यह निर्णय खेदजनक है। मेरे खयालसे इसका कारण यह है कि अमेरिकाको भारतीय सभ्यता और उसके विकासकी सम्भावनाओंके बारेमें कुछ मालूम नहीं है।